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________________ ध्यान रौद्रध्यान के भेद रौद्रध्यान के चार भेद बताये गये हैं- १. हिंसा, २ . असत्य, ३. चोरी और ४. विषय संरक्षण | ५६ रौद्रध्यान में जीव को हमेशा हिंसा, असत्य, चोरी तथा विषयों की रक्षा करने में विशेष आनन्द आता है। हिंसा, असत्य, चोरी और विषय संरक्षण को ही हिंसानन्द, मृषानन्द, चौर्यानन्द और संरक्षणानन्द नाम से अभिहित किया गया है । ५७ हिंसानन्द रौद्रध्यान Jain Education International १८९ निर्दयी व्यक्ति द्वारा वध, वेध, बंधन, दहन, अंकन और मारने के क्रूर अध्यवसाय का होना या अनिष्ट विपाकवाले उत्कट क्रोध से ग्रस्त व्यक्ति द्वारा ध्वंस किये जाने पर उससे हर्ष या सुख प्राप्ति का होना हिंसानन्द रौद्रध्यान कहलाता है । ५८ तात्पर्य है कि स्वयं जीव को मारना या कोई दूसरा मनुष्य जीव को मारता है, तो उसको देखकर प्रसन्न होना या उसका अनुमोदन करना हिंसानन्द रौद्रध्यान कहलाता है। इस ध्यान का ध्यानी क्रोध में आकर हमेशा हिंसादि की बातें ही सोचता रहता है जिसके कारण उसमें हमेशा विषभरा रहता है, जिसका मुख्य कारण है कषाय का होना। कषाय के कारण ही उसकी बुद्धि पापमयी हो जाती है । ५९ मृषानन्द रौद्रध्यान ६० झूठी कल्पनाओं के जाल में फाँस कर दूसरों को धोखा देने और छल कपट से उन्हें ठगने आदि का विचार करना मृषानन्द रौद्रध्यान कहलाता है । ६° अभिप्राय यह है कि झूठ बोलकर मन में खुशी हो और मन में यह विचार आये कि 'देखो हमने किस चालाकी से झूठ बोला कि किसी को मालूम भी न हुआ' ऐसा चिन्तन मृषानन्द रौद्रध्यान कहलाता है। जैसा कि ध्यानशतक में भी कहा गया है कि मृषानन्द रौद्रध्यानी दूसरों को ठगने में चतुर व्यक्ति, मायाचारी, अपना पाप छिपाने के लिए अपनी पापमय दुर्बुद्धि से मिथ्यावचन बोलने तथा प्राणीघातक वचन बोलने में दृढ़ होता है । १ चौर्यानन्द रौद्रध्यान किसी भी प्रकार की पर-वस्तु का अपहरण करना चोरी कहलाता है और ऐसी चेष्टावाले चिन्तन को चौर्यानन्द या स्तेयानुबन्धी रौद्रध्यान कहते हैं । २ अर्थात् तीव्र क्रोध और लोभ से आकुल होकर प्राणियों का अपहनन, अनार्य आचरण और दूसरे की वस्तु का अपहरण करने की इच्छा करना तथा पारलौकिक दोषों से निरपेक्ष रहना चौर्यानन्द रौद्रध्यान है। दूसरी भाषा में चोरी अथवा ठगाई करे और चित्त में यह विचार करे कि ६३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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