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जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन
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__ आनन्द ने पुनः पूछा कि यदि उनके साथ बातचीत का प्रसंग उपस्थित हो जाए तो?
बुद्ध ने कहा- ऐसी स्थिति में भिक्षु को अपनी स्थिति को सम्भाले रखना चाहिए। विनयपिटक में भिक्षु के लिए स्त्री का स्पर्श तो क्या भिक्षु का एकान्त में भिक्षुणी के साथ बैठना भी अपराध है।१६१
मृषावाद-विरमण - भिक्षु को सत्यभाषी होना चाहिए। सुत्तनिपात्त के अनुसार भिक्षु को न स्वयं असत्य बोलना चाहिए, न अन्य से असत्य बोलवाना चाहिए और न ही किसी को असत्य बोलने की अनुमति देनी चाहिए।१६२ परन्तु जो वचन सत्य हो पर अहितकर हो उसे नहीं बोलना चाहिए, लेकिन जो सत्य हो, वह प्रिय हो या अप्रिय, हितकारी दृष्टि से बोलना आवश्यक है तो उसे बोल देना चाहिए।१६३
इनके अतिरिक्त भी कुछ ऐसे वचन हैं जिनका प्रयोग भिक्षु को नहीं करना चाहिए। वे वचन इस प्रकार हैं-१६४
१. भिक्षु को हमेशा शुद्ध, उचित, अर्थपूर्ण, तर्कपूर्ण तथा मूल्यवान वचन बोलना
चाहिए। २. जानबूझ कर असत्य नहीं बोलना चाहिए। ३. अपमान जनक शब्दों का उपयोग नहीं करना चाहिए। ४. भिक्षु को गृहस्थ सम्बन्धी कार्यों से वंचित रहना चाहिए। ५. गृहस्थोचित भाषा का प्रयोग भी भिक्षु के लिए वर्जित है। ६. सदैव कठोर वचन का परित्याग कर नम्र एवं मधुर वचन बोलना चाहिए।१६५
सुरामद्यमैरेय-विरमण - भिक्षु और गृहस्थ दोनों के लिए सुरापान, मद्यपान आदि नशीली वस्तुओं का सेवन सर्वथा वर्जित है।
विकाल भोजन-विरमण - विकाल भोजन अर्थात् १२ बजे दिन के पश्चात् तथा रात्रि भोजन दोनों ही बौद्ध भिक्षुओं के लिए त्याज्य है। जैसा कि भगवान् बुद्ध ने कहा है-हे भिक्षुओं! मैंने रात्रि-भोजन छोड़ दिया, उससे मेरे शरीर में व्याधियाँ कम हो गयी हैं, जाड्य कम हो गया है, शरीर में बल आ गया है, चित्त को शांति मिली है। हे भिक्षुओं! तुम भी ऐसा ही आचरण रखो। यदि तुम रात्रि में भोजन करना छोड़ दोगे तो तुम्हारे शरीर में व्याधि कम होगी, जाड्य कम होगा, शरीर में बल आयेगा और तुम्हारे चित्त को शांति मिलेगी।१६६
नृत्यगान वादिन-विरमण – भिक्षुओं को किसी नृत्य, संगीत में भाग लेने का
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