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________________ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन बुद्धि में स्थित, गहन स्थान में रहनेवाले पुरातनदेव को अध्यात्म-योग की प्राप्ति द्वारा जानकर धीर पुरुष हर्ष-शोक को त्याग देता है।२° फलत: साधक, जो नित्यों में नित्य है, चेतनों में चेतन है और अकेला ही बहतों को भोग प्रदान करनेवाला है, सांख्य-योग द्वारा ज्ञातव्य उस सर्वकारण देव को जानकर समस्त बन्धनों से मुक्त हो जाता है।२१ जो उस ज्ञानातीत प्रकाशस्वरूप महान् पुरुष को जानता है, वह इस संसार-सागर रूपी बन्धन (मृत्यु) को पार कर जाता है। इसके सिवा परमपद प्राप्ति का कोई और मार्ग नहीं है। २२ योगसिद्धि का प्रभाव बताते हुए श्वेताश्वतरोपनिषद् में कहा गया है कि जिस प्रकार मृत्तिका से मलिन हुआ बिम्ब (सोने या चाँदी का टुकड़ा) शोधन किये जाने पर तेजोमय होकर चमकने लगता है, उसी प्रकार देहधारी जीव आत्मतत्त्व का साक्षात्कार कर अद्वितीय, कृतकृत्य और शोकरहित हो जाता है।२३ परन्तु जब वह आत्मभाव से ब्रह्मतत्त्व का साक्षात्कार करता है उस समय उस अजन्मा, निश्चल और समस्त तत्त्वों से विशुद्ध देव को जानकर वह सम्पूर्ण बन्धनों से मुक्त हो जाता है।२४ फलत: साधक वाणी और मन से निवृत्त हो जाता है तथा निर्भीक होकर ब्रह्मानन्द का आस्वादन करता है२५ तथा जन्ममरण के बन्धन से वह सर्वथा मुक्त हो जाता है।२६ विभिन्न उपनिषदों में ब्रह्मपद-प्राप्ति के लिए श्रद्धा, तप, ब्रह्मचर्य, सत्य, दान, दया आदि की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है।२७ लेकिन इस पद की प्राप्ति के लिए ज्ञान एवं योग अर्थात् आचार और विचार दोनों की आवश्यकता होती है। उपनिषदों में योग के प्रकारों में भेद पाया जाता है। किसी में योग के दो प्रकार (कर्मयोग और ज्ञानयोग)२८ तो किसी में चार प्रकार (मंत्रयोग, राजयोग, लययोग, हठयोग)२९ बताये गये हैं। इनके अतिरिक्त उपनिषदों में प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, तर्क और समाधि आदि के वर्णन तो मिलते हैं३०, लेकिन आसन आदि का विस्तृत वर्णन उपलब्ध नहीं होता है। कठ, मुण्डक, श्वेताश्वतर, वृहदारण्यक तथा छान्दोग्योपनिषद् आदि के अतिरिक्त भी ऐसे बहुत से उपनिषद् हैं, जिनमें योग की पर्याप्त चर्चा की गयी है, जिसे “योगोपनिषद् संग्रह" के नाम से जाना जाता है। इन उपनिषदों की संख्या २० (बीस) है। इनके अतिरिक्त योगराजोपनिषद् को भी योग का आर्ष ग्रन्थ माना गया है।३१ इन उपनिषदों के नाम इस प्रकार हैं३२ ___ अद्वयतारकोपनिषद्, अमृतानादोपनिषद्, अमृतबिन्दूपनिषद्, क्षुरिकोपनिषद्, तेजोबिन्दूपनिषद्, त्रिशिख ब्रह्मणोपनिषद्, दर्शनोपनिषद्, ध्यानबिन्दूपनिषद्, नादबिन्दूपनिषद्, ब्रह्मविद्योपनिषद्, मण्डलब्रह्मणोपनिषद्, महावाक्योपनिषद्, योगकुण्डल्युपनिषद्, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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