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________________ षडावश्यक षडावश्यक को श्रावक का छः आवश्यक कर्म भी कहा जाता है । ९९ श्रावक जीवन के आवश्यक कर्म हैं- (१) देवपूजा (२) गुरुसेवा (३) स्वाध्याय (४) संयम (५) तप (६) दान । दिगम्बर परम्परा १०१ पंच महाव्रत योग-साधना का आचार पक्ष श्रमणों की आचार संहिता श्रमण के व्रत महाव्रत कहलाते हैं, क्योंकि साधु या निर्ग्रन्थ हिंसादि का पूर्णत: त्याग करते हैं। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह योग-सिद्धि के मूल साधन हैं। ऐसे साधु सामाचारी के विषय में कहा गया है कि गुरु के समीप बैठना, विनय करना, निवास स्थान की शुद्धि रखना, गुरु के कार्यों में शांतिपूर्वक सहयोग देना, गुरु- आज्ञा को निभाना, त्याग में निर्दोषता, भिक्षावृत्ति से रहना, आगम का स्वाध्याय करना एवं मृत्यु आदि का सामना करना आवश्यक है । १. जहाँ तक साधु के गुणों का प्रश्न है तो दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही परम्पराओं में साधु के क्रमशः २८ एवं २७ मूलगुण माने गये हैं, जो इस प्रकार हैं पंचेन्द्रियों का संयम पंच समितियाँ षडावश्यक केशलुंचन नग्नता अस्नान भूशयन अदन्तधावन खड़े होकर भोजन ग्रहण करना एक समय भोजन करना आदि। श्वेताम्बर परम्परा १०२ पंच महाव्रत Jain Education International पंचेन्द्रियों का संयम अरात्रि भोजन १५९ आन्तरिक पवित्रता भिक्षु उपाधि की पवित्रता क्षमा अनासक्ति मन, वचन और काय की सत्यता छः प्रकार के प्राणियों का संयम तीन गुप्ति सहनशीलता संलेखना आदि। मूलगुणों के सम्बन्ध में जहाँ दिगम्बर परम्परा बाह्य तथ्यों पर अधिक बल देती है वहीं श्वेताम्बर परम्परा आन्तरिक विशुद्धि को अधिक महत्त्व देती है। पंच महाव्रत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ये पंच महाव्रत हैं। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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