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________________ योग-साधना का आचार पक्ष १५५ परन्तु शिक्षाव्रत के उपर्युक्त विभाजन को लेकर विद्वानों में मतैक्य नहीं है। चारित्रपाहुड०२, हरिवंशपुराण", आदिपुराण आदि में शिक्षाव्रत के क्रमश: सामायिक, प्रोषधोपवास, अतिथिसंविभाग और संलेखना चार प्रकार बताये गये हैं। इसी प्रकार रत्नकरण्डक श्रावकाचार६, स्वामिकार्तिकेयानप्रेक्षा, धर्मामृत (सागार) आदि में क्रमश: देशावकाशिक, सामायिक, प्रोषधोपवास एवं अतिथिसंविभाग- ये चार प्रकार बताये गये हैं। सामायिक - सामायिक अर्थात् समत्व का अभ्यास। अभिप्राय है कि सामायिक आत्मा का वह भाव अथवा शरीर की वह क्रिया-विशेष है जिससे मनुष्य को समभाव की प्राप्ति होती है। पुरुषार्थसिद्धयुपाय में कहा गया है कि इन्द्रियों को स्थिर करके राग-द्वेष रूपी परिणामों को छोड़कर, समताभाव धारण करके आत्मलीन हो जाना सामायिक शिक्षाव्रत है।९ इनके भी पाँच अतिचार हैं जिनसे सामायिक व्रत दूषित होता है,८० वे हैं (१) मन से सावध भावों का चिन्तन करना। (२) वाणी से सावध वचन बोलना। (३) शरीर से सावध क्रिया करना। (४) सामायिक के प्रति अनादर भाव रखना। (५) समय पूरा किये बिना ही सामायिक पूरी कर लेना। अत: श्रावकों को इन दोषों से बचने का प्रयास करना चाहिए। प्रोषधोपवास - आत्मचिन्तन के निमित्त सर्वसावध क्रिया को त्यागकर शान्तिपूर्ण स्थान में बैठकर उपवासपूर्वक समय व्यतीत करना प्रोषधोपवास है। योगशास्त्र में कहा गया है कि कषायों को त्याग करके प्रत्येक चतुर्दशी एवं अष्टमी के दिन उपवास कर तप ब्रह्मचर्यादि धारण करना प्रोषधोपवास कहलाता है।८१ व्रत के दिन साधक दिनभर धर्मस्थान या उपासनागृह में निवास करता है। इस व्रत के भी पाँच अतिचार हैं, जिनसे साधकों को बचना चाहिए।८२ अतिचार निम्नलिखित हैं १. भूमि को बिना देखे और बिना प्रमार्जित किये मल-मूत्र आदि का उत्सर्ग अर्थात् त्याग करना। २. पाट-चौकी आदि वस्तुएँ बिना देखे व बिना प्रमार्जित किये रखना । ३. बिना देखे व बिना पूजे बिस्तर-आसन आदि लगाना। ४ प्रोषधव्रत के प्रति आदर का न होना । ५. प्रोषध करके भूल जाना। देशावकाशिक व्रत - देश यानी क्षेत्र का एक अंश और अवकाश अर्थात् स्थान। दिशापरिमाण-व्रत में जीवन भर के लिए मर्यादित दिशाओं को दिन एवं रात्रि में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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