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________________ १५२ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन उपर्युक्त चार व्रतों की भाँति इस व्रत के भी पाँच अतिचार५१ बताये गये हैं। जिनसे श्रावक साधकों को बचना चाहिए। (१) क्षेत्रवास्तु-परिमाण-अतिक्रमण - मकानों, दुकानों तथा खेतों की मर्यादा को किसी भी बहाने से बढ़ाना। (२) हिरण्य-सुवर्ण-परिमाण-अतिक्रमण - सोने-चाँदी आदि के परिमाण को भंग करना। (३) धन-धान्य-परिमाण-अतिक्रमण - मुद्रा, जवाहरात आदि की मर्यादा को भंग करना। (४) द्विपद-चतुष्पद-परिमाण-अतिक्रमण - दास-दासी, नौकर, कर्मचारी आदि पशुधन के परिमाण का उल्लंघन करना। गुणव्रत अणुव्रतों की रक्षा एवं विकास के लिए जैनाचार में गुणव्रतों की व्यवस्था की गयी है। इसे दूसरी भाषा में कहा जा सकता है कि अणुव्रतों की भावनाओं की दृढ़ता के लिए जिन विशेष गुणों की आवश्यकता होती है, उन्हें गुणव्रत कहा जाता है। धर्मामृत (सागार) में इसके तीन भेद बताये गये हैं-(१) दिग्वत (२) अनर्थदण्ड और (३) भोगोपभोगपरिमाण व्रत।५२ इनके अतिरिक्त उपासकदशांग,५३ तत्त्वार्थसूत्र,५४ उपासकाध्ययन,५५ चारित्रसार,५६ अमितगति श्रावकाचार,५७ पद्मनन्दिपंचविंशति,५८ प्राभृतसंग्रह,५९ स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा,६० धर्मामृत (सागार),६१ योगशास्त्र,६२ सर्वार्थसिद्धि,६३ हरिवंशपुराण,६४ वसुनन्दि श्रावकाचार५, आदिपुराण आदि ग्रन्थों में गुणव्रत के उपर्युक्त तीन वर्गीकरण की चर्चायें हुई हैं। परन्तु उपर्युक्त ग्रन्थों में गुणव्रत के भेदों के नाम और क्रम में अन्तर है। किसी ग्रन्थ में गुणव्रत के अन्तर्गत शिक्षाव्रत के भेद, तो किसी में शिक्षाव्रत के अन्तर्गत गुणव्रत के भेद समाहित हैं। यथा- स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा, धर्मामृत (सागार) आदि ग्रन्थों में भोगोपभोगपरिमाणव्रत को गुणव्रत के अन्तर्गत लिया गया है तो सर्वार्थसिद्धि, वसुनन्दि श्रावकाचार, आदिपुराण आदि ग्रन्थों में भोगापभोगपरिमाण का उल्लेख शिक्षाव्रत में किया गया है। इसी प्रकार देशव्रत को देशावकालिक की संज्ञा देकर रत्नकरण्डक श्रावकाचार, स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा आदि ग्रंथो में शिक्षाव्रत के अन्तर्गत रखा गया है। १. दिग्द्रत - जिस व्रत के द्वारा दिशाओं की सीमा निर्धारित की जाती है उसे दिग्व्रत कहते हैं।६७ मनुष्य की अभिलाषा आकाश की भाँति असीम और अग्नि की तरह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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