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________________ ११२ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन जीव का स्वरूप जैन मान्यता के अनुसार सभी वस्तु में गुण और पर्याय होते हैं। जीव में भी गुण और पर्याय हैं। चेतना जीव का गुण है और जीव के विभिन्न रूप उसके पर्याय हैं। पर्याय की विभिन्न अवस्थाएँ भाव कही जाती हैं। जीव के पाँच भाव इस प्रकार हैं-औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक।१७। औपशमिक - उपशम का अर्थ होता है-दब जाना। जब सत्तागत कर्म दब जाते हैं, उनका उदय रुक जाता है, फलस्वरूप जो आत्मशुद्धि होती है वह औपशमिक भाव है। यथा- पानी में मिली हुई गन्दगी का बर्तन की तल में बैठ जाना। क्षायिक - क्षय से क्षायिक बना है। कर्मों के पूर्णत: क्षय हो जाने से जो आत्मशुद्धि होती है, वह क्षायिक भाव है। जिस प्रकार पानी से गन्दगी पूर्णतः दूर हो जाती है और पानी स्वच्छ हो जाता है। उसी प्रकार कर्मों के सर्वांशत: क्षय हो जाने से आत्मा पूर्णरूपेण शुद्ध हो जाती है। इसी स्थिति को क्षायिकभाव कहते हैं। क्षायोपशमिक - क्षय और उपशम के संयोग से क्षायोपशमिक भाव बनता है अर्थात् कुछ कर्मों का क्षय हो जाना और कुछ कर्मों का दब जाना। यथा-कोदों को धो देने से उसकी मादकता कम हो जाती है, किन्तु कुछ मादकता रह ही जाती है। इस प्रकार कर्मों के क्षय और उपशम से जो भाव बनता है वह क्षायोपशमिक भाव कहलाता है। ___ औदयिक - दबे हुए कर्मों का उदित हो जाना औदयिक भाव है। जिस प्रकार पानी के पात्र के तल में बैठी हुई गंदगी पात्र के हिल जाने से पुनः ऊपर आ जाती है। उसी प्रकार औपशमिक भाव फिर से उदित हो जाते हैं, क्रियाशील हो जाते हैं। पारिणामिक - स्वाभाविक ढंग से द्रव्य के परिणमन से जो भाव बनता है, वह पारिणामिक भाव कहलाता है। उपर्युक्त पाँचों भाव जीव के स्वरूप हैं। जीव के सभी पर्याय इन भावों में से किसी न किसी भाववाले ही होते हैं। लेकिन पाँचों भाव सभी जीवों में एक साथ नहीं हो सकते हैं। जीव के विभाग जीव को मुख्यत: दो भागों में विभाजित किया जाता है- संसारी तथा मुक्त।१८ जो जीव शरीर धारण कर कर्मबन्धन के कारण नाना योनियों में भ्रमण करता है वह सांसारिक जीव कहलाता है और जो सभी प्रकार के कर्मबन्धनों से छूट जाता है वह मुक्त जीव कहलाता है। संसारी जीव शरीर से भिन्न नहीं होता, यथा-दूध में पानी, तिल में तेल, ये एक से प्रतीत होते हैं, वैसे ही संसार-दशा में जीव और शरीर एक लगते हैं। लेकिन ये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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