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________________ 46 ] सकारात्मक अहिसा सत्प्रवृत्ति के साथ रहे हुए त्याग में हैं, जिससे व्यक्ति के दोष गलते हैं। सम्मान के लिए दिया गया दान, दाता के लिए मान कषाय की वृद्धि का हेतु होने से उतना हितकर नहीं है, जितना निष्काम भाव से करुणार्द्र होकर दिया गया दान । परन्तु, जिसे दान दिया जा रहा है उसके लिए तो वह हितकर है। इस प्रकार एक पक्ष के लिए हितकर होने से भी यह अच्छा है । भोगी व्यक्ति के लिए किसी वस्तु का दान देना या न देना दोनों ही बंध के कारण हैं । वस्तु का दान न देने पर तो वस्तु के प्रति रही हुई उसकी ममता व भोग की कामना उसके बंधन का कारण बन ही रही है अतः दान न देने में अहित ही है । बंध का कारण भोगेच्छा है,वस्तु नहीं । फिर भी दान न देने से तो अपना व जगत इन दोनों में से किसी का भी हित नहीं है। जबकि सम्मान के लिए दान देने में भी जगत् का हित संभव है तथा उस दान से दाता के हृदय में प्रेम, करुणा, अनुकम्पा-भाव जागृत होने की सम्भावना है। अतः वह दाता के अपने हित में भी निमित्त बन सकता है। इस प्रकार सम्मान के लिए दान देना, दान न देने की अपेक्षा हितकर है। दूसरी बात यह है कि दाता के कषाय की वृद्धि या कर्मबंध का कारण प्रदत्त वस्तु नहीं है, प्रत्युत उसका मान कषाय है। अतः सम्मान के लिए दिया गया दान भी अहितकर नहीं है। स्मरण रहे दान के साथ रहा हा कषाय बुरा है, दान नहीं। सेवा का एक लाभ यह है कि क्रियात्मक सेवा करने से भावनात्मक सेवा की स्फुरणा होती है । दूसरों की प्रसन्नता से उसे निर्विकार प्रसन्नता का रस मिलता है। जिससे उसमें उदारता का भाव जगता है जो सेवक के लिए कल्याणकारी है। साथ ही साथ जिसकी सेवा की जाती है उसमें भी सेवक के प्रति प्रात्मीयता का, मैत्री का, प्रेम का भाव जगता है वह उसके लिए हितकारी है । तात्पर्य यह है कि सेवा न करने के बजाय सेवा किसी भी रूप में करना अच्छा है। इससे हानि तो कुछ है नहीं लाभ ही लाभ है और करुणार्द्र होकर प्रतिफल की इच्छा रहित सेवा करना इससे भी लाख गुरणा अच्छा है। अर्थात् सम्मान आदि भौतिक लाभ के लिए भी सेवा करना अच्छा ही है । परन्तु, उससे अधिक अच्छा है निष्काम भाव से सेवा करना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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