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सकारात्मक अहिंसा
गुरण में, बुराई का भलाई में रूपान्तरण करना ही उदात्तीकरण कहा जाता है। उदात्तीकरण का सर्वोत्तम उपाय है अपने आपको लोकोपकारी सेवा-कार्यों में लगाना । उदाहरण के लिए काम-शक्ति को ही लें। कामशक्ति तीन रूप में प्रकट होती है-1. कामक्रीड़ाओं में, 2. प्रेमी के प्रति प्रेम-प्रदर्शन में और 3. वात्सल्य या सेवाभाव में । पहला रूप शारीरिक है, दूसरा मानसिक और तीसरा आध्यात्मिक । पहला रूप प्रगाढ़ मोह का है, दूसरा उससे कम मोह का और तीसरा मोह-नाश का । उदाहरणार्थ जो बाल-विधवा हो जाती है उसे लघु शिशु पालनार्थ दे दिया जाता है, जिससे उसकी कामवासना का उदात्तीकरण होकर वात्सल्य में रूपान्तरण हो जाता है। अर्थात् जो व्यक्ति अपना समय जितना अधिक सेवा में लगाता है उसकी काम-वासना उतनी ही कम होती है । यदि वह सेवा रोगियों के प्रति की जाती है तो इससे एक और लाभ होता है। शरीर की अनित्यता और उससे होने वाले कष्टों पर बार-बार ध्यान जाने से शरीर के प्रति मोह घटता है जिससे काम-वासना भी शिथिल हो जाती है। साथ ही रोगियों की सेवा से हृदय में द्वेषभावनाओं की शक्ति भी क्षीण होती है । इस प्रकार सेवा राग-द्वेष को पतला करती है एवं उन्हें मैत्री, वात्सल्य आदि में रूपान्तरित कर देती है।
अपने को दूसरे की सेवा में लगा देने से व्यक्ति अपने दुःखों को भूल जाता है । अपने दुःखों पर विचार करने से दुःख गहरे होते हैं। जो व्यक्ति अपने दुःखों को जितना अधिक याद करता है वह उन्हें उतना ही बढ़ाता है और जो उनको जितना भुलाता है वह उन्हें उतना ही कम करता है । रोग के विषय में भी यही तथ्य लागू होता है। रोग से मुक्त होने का एक उपाय यह भी है कि वह उसी प्रकार के रोग से पीड़ित लोगों की सेवा करे । ___यह तथ्य है कि सेवक किसी से कुछ भी प्रतिफल पाने की चाह नहीं करता है। परन्तु, प्रतिफल न चाहने पर भी उसे निसर्गतः ही ही फल मिलता है। कारण कि यह प्राकृतिक नियम है कि बोया गया बीज करोड़ो-सैकड़ों गुना फल देता है। नीम के बोये गये कड़वे
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