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सकारात्मक अहिंसा
का लक्षण है जहां अनुकंपा नहीं वहाँ सम्यक्त्व नहीं, अनुकंपाहीन प्राणी कभी सम्यकदृष्टि नहीं हो सकता । सम्यग्दर्शन के बिना मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं है। अतः साधक वही हो सकता है जो सम्यग्दृष्टि है। सम्यग्दृष्टि वही है जिसके हृदय में अनुकंपा है । जैसाकि कहा हैप्रशमसंवेगानुकंपास्तिक्याभिव्यक्तिलक्षणं सम्यक्त्वम् ।
(धवला 1/1,1,4) अर्थात् प्रशम, संवेग, अनुकंपा और आस्तिक्य की अभिव्यक्ति ही जिसका लक्षण है उसको सम्यक्त्व कहते हैं ।
सम्यक्त्वं कीदृशं भवति ? पञ्चेति, पंचभिः शमसंवेगनिर्वेदानुकम्पास्तिक्यरूपैर्लक्षणैः लिङ्गर्लक्षितमुपलक्षितं भवति ।
धर्म संग्रह, अधिकार 2 संवेगो चित्र उवसम निव्वेप्रो तहय होइ अणुकंपा अस्थिक्कं चित्र एए सम्मत्ते लक्खणा पंच । (बृहत्कल्पवृत्ति उ. 1, प्रकरण 2)
अर्थात् शम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा और आस्तिक्य इन पांच लक्षणों से युक्त सम्यक्त्व होता है।
संवेगः प्रशमः स्थैर्यम् असंमूढत्वमस्मयः आस्तिक्यमनुकम्पेतिज्ञ या सम्यक्त्वभावना (महापुराण 29/97)
संवेग, प्रशम, स्थिरता, अमूढ़ता, गर्व न करना, आस्तिक्य और अनुकंपा ये सात सम्यक्त्व की भावनाएं हैं।
अर्थात् 'अनुकंपा' सम्यग्दर्शन के पांच लक्षणों (शम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा एवं प्रास्था) में से एक लक्षण है। सम्यग्दर्शन मुक्ति का मार्ग होने से धर्म है अतः अनुकंपा भी धर्म है।
अनुकंपा के स्वरूप का विवेचन करते हुए कहा है :1. तिसिदं बुभुक्खिदं वा दुहिदं दठूण जो दु दुहिदमणो। पडिवज्जदि तं किवया तस्सेस, होदि अनुकंपा ।।
(पंचास्तिकाय 137)
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