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करुणा और अनुकम्पा
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तृषातुर, क्षुधातुर अथवा दुःखी को देखकर जो मनुष्य स्वयं व्यथित होता हुआ उसके प्रति दया का व्यवहार करता है वह
उसकी अनुकपा है। 2. बाला य बुड्ढ़ा य अपंगा य, लोगे विसेसे अणुकंपरिणज्जा (बृहत्
कल्पभाष्य 4342)
बालक, वृद्ध और अपंग व्यक्ति विशेष अनुकंपा के योग्य होते हैं। 3. मा होह णिरणुकंपा होह दाणयरा।
अनुकंपा रहित मत होप्रो, अपितु दान करो। 4. सर्वप्राणिषु मैत्री अनुकंपा (तत्वार्थवार्तिक 1,2,30)
समस्त प्राणियों के प्रति मैत्रीभाव अनुकंपा है । 5. सस्थावरेषु दया अनुकंपा (तत्वार्थश्लोकवार्तिक 1,2,12)
त्रस एवं स्थावर प्राणियों पर दया करना अनुकंपा है। 6. अनुकंपा दु:खितेषु कारुण्यम् (तत्त्वार्थभाष्य, हरिभद्रसूरि
वत्ति , 1,2)
दुःखी प्राणियों पर करुणा करना अनुकंपा है। 7. अनुग्रहबुद्धघार्दीकृतचेतसः परपीडामात्मसंस्थामिव कुर्वतोऽ
नुकम्पनमनुकम्पा (तत्त्वार्थभाष्य, सिद्धसेनगरिणवृत्ति 6,13) उपकार बुद्धि से दूसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझ कर
दयालु व्यक्ति का अनुकंपित होना अनुकम्पा है । 8. धर्मस्य परमं मूलमनुकंपा प्रचक्षते (उपासकाध्ययन 230)
धर्म का परम मूल अनुकंपा है। 9. अनुकंपा दुःखितेषु अपक्षपातेन दुःखप्रहाणेच्छा (योगशास्त्र,
स्वोपज्ञविवरण 2,15) बिना पक्षपात के दुःखियों का दुःख दूर करने की इच्छा अनुकंपा है। क्लिश्यमानजन्तूद्ध रणबुद्धिः अनुकंपा (भगवती आराधना मूला. टीका 1696)
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