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करुणा और अनुकम्पा
[ 23 करुणाए कारणं कम्मं करुणेत्ति किरण वुत्तं ?ण, करुणाए जीव-सहावस्स कम्मजणिदत्तविराहादो।
(धवला पुस्तक 13 पृष्ठ 362) प्रश्न : करुणा का कारणभूत कर्म करुणा कर्म है, वह क्यों नहीं
कहा? उत्तर : नहीं, क्योंकि करुणा जीव का स्वभाव है, अतः उसे कर्म
जनित मानने में विरोध पाता है। (3) दीनेष्वार्तेषु भीतेषु याचमानेषु जीवितम् । प्रतीकारपरा बुद्धिः कारुण्यमभिधीयते ।।
(हेमचन्द्र, योगशास्त्र, चतुर्थ प्रकरण-120) अर्थात् जो गरीब हैं या दुख दर्द से संतप्त हैं, भयभीत हैं या प्राणों को भीख मांगते हैं ऐसे लोगों के कष्ट-निवारण की बुद्धि कारुण्य है।
(4) कारुणिकत्वं च वैराग्याद् न भिद्यते (स्याद्वादमंजरी) अर्थात् वैराग्य से कारुण्य भिन्न नहीं है। जहां कारुण्य है वहां वैराग्य है अर्थात् राग का गलना है ।
जहाँ करुणा है वहाँ अनुकम्पा है । दुःखियों, पीड़ितों को देखकर जिसका हृदय प्रकंपित नही होता वह सहृदय न होकर निर्दय है । उसका हृदय पत्थर-हृदय है, उसमें जड़ता है, संवेदनशीलता का अभाव है अर्थात् दर्शन-गुरण पर भंयकर प्रावरण है। उसके चिन्मयगुरण का विकास नहीं हुआ है। संवेदनशीलता ही जीव का लक्षण है । जिसमें जितनी संवेदनशीलता की कमी है उसमें उतनी ही जड़ता है वह उतना ही अधिक अविकसित निम्नस्तर का प्रारणी है। संवेदनशीलता का विकास ही चेतना का विकास है। जिस प्राणी के हृदय में जितनी अधिक संवेदनशीलता है उसके हृदय में उतनी ही अधिक अनुकम्पा होगी। अनुकंपा सम्यक्त्व
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