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सकारात्मक अहिंसा
हत्या होती । चेलना की हत्या की वह छोटी-सी चिनगारी सारे भारतवर्ष को युद्ध की ज्वाला में झोंक देती जिससे व्यर्थ ही करोड़ों निरपराध लोगों की हत्या हो जाती । जिस प्रकार कि आस्ट्रिया के एक व्यक्ति की हत्या की छोटी सी घटना ने द्वितीय महायुद्ध का रूप धारण कर विश्व में कोहराम मचा दिया था ।
भगवान् महावीर को केवल - दर्शन था । सम्पूर्ण दर्शन था । दर्शन है स्वसंवेदन | भगवान् महावीर पूर्ण संवेदनशील थे । अतः उनका अंतःकरण प्राणी मात्र के दुःख से द्रवित हो उठता था अतः जो भी उनके संपर्क में श्राता उसके दुःख से द्रवित हो उसके दुःखनिवारण के लिए वे प्रवृत्त हो उठते थे, उनका किसी प्रकार का अपना स्वार्थ या लाभ नहीं था । यही सच्ची दया का स्वरूप है । वीतराग प्रभु अनंत दयालु होते हैं वे अपना जीवन व सर्वस्व जगत् के हित के लिए अर्पण कर देते हैं, अर्थात् दान कर देते हैं इसलिए अनंतदानी व दयालु कहे जाते हैं । भगवान् महावीर ने सब जीवों की रक्षा के लिए व दया के लिए ही प्रवचन फरमाया है ।
इसी प्रकार भगवान महावीर ने राजा चण्डप्रद्योत को धर्मदेशना देकर रानी मृगावती को छुटकारा दिलाया । वीतराग भगवान् महावीर के जीवन की ये घटनाएं और अन्य अनेक घटनाएं तथा उनके विहारस्थ प्रवचन श्रादि विधेयात्मक अहिंसा के ज्वलन्त प्रमाण हैं ।
इन सभी घटनाओं में विशेषता यह है कि इनमें पक्ष-विपक्ष में से किसी व्यक्ति का भी अहित नहीं हुआ, प्रत्युत सब का हित ही हुआ है। सच तो यह है कि दया रूप अहिंसा सबके लिए हितकारी होती है ।
दया के द्योतक अनेक शब्द हैं - जैसे औपपातिकसूत्र नियुक्ति में कहा है- 'अनुकंपा कृपा दयेत्येकार्थाः' अर्थात् दया, कृपा और अनुकंपा एकार्थक हैं । निशीथसूत्रचूरिंग 130 में कहा हैअनुकम्पनमनुकंपा दयायाम् । अर्थात् दुःखियों के दुःख से अनुकंपन रूप अनुकंपा दया का ही रूप है । अतः दया के अनुकंपा, करुणा, सेवा प्रादि रूपों का आगे विस्तार से वर्णन किया जा रहा हैं ।
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