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अहिंसा का सकारात्मक रूप
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जागती जा रही है। विदेशों में मांसाहार के प्रति घृणा और शाकाहार के प्रति झुकाव बड़ी तेजी से बढ़ रहा है जबकि आर्य देश कहलाने वाले भारत में इसके विपरीत हो रहा है। यह यहां के धर्मगुरुत्रों, राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए विचारणीय विषय है। विश्व के प्रसिद्ध विचारक जार्ज बनार्ड शा व विश्व विख्यात वैज्ञानिक आइंस्टीन शाकाहारी ही थे।
जब गोशालक को भस्म करने के लिए उस पर वैश्यायन तापस ने तेजोलेश्या फेंकी थी उस समय भगवान् महावीर ने शीतलेश्या का प्रयोग कर उसे बचाया था। यदि भगवान में करुणाभाव न होता तो उसकी रक्षा करने के लिए शीतलेश्या की प्रवृत्ति न करते । उनकी भोर से गोशालक मरे या बचे उन्हें उससे क्या लेना देना था? क्या आवश्यकता थी गोशालक की रक्षा करने की उन्हें ?
भगवान् महावीर के जीवनकाल की एक घटना है कि मगध सम्राट् श्रेणिक को अपनी पत्नी महारानी चेलना के दुश्चरित्र होने का संदेह हो गया। यह संदेह इतना बढ़ गया कि समस्त रानियां व नारियां श्रेणिक को दुश्चरित्र प्रतीत होने लगी। उन्होंने अपने मंत्री अभयकुमार को अन्तःपुर जलाने का आदेश दिया जिससे सब रानियों के साथ चेलना भी जलकर राख हो जाय । इस बात की जानकारी महावीर को होते ही उन्होंने सम्राट् श्रेणिक को प्रतिबोध दिया कि चेटक महाराजा की सातों पुत्रियां जिनमें चेलना भी है सभी पतिव्रता हैं, निर्दोष हैं। संदेह को त्यागो, सत्य को स्वीकार करो। भगवान महावीर के उपदेश से श्रेणिक का संदेह दूर हो गया और भयंकर हत्याकाण्ड बच गया ।
क्या आवश्यकता थी चेलना को बचाने की, उन्होंने यह क्यों नहीं विचारा कि विश्व में अनंत प्राणी प्रतिक्षण मर रहे हैं । चेलना भी मरे, उन्हें क्या ? परन्तु उन्होंने करुणा करके एक अति भयंकर अनर्थ होने से बचा लिया । यदि सभी रानियों को जला दिया जाता तो उनके पितृपक्ष (पीहर) के सब राजाओं के साथ बैर हो जाता और उनके साथ भयंकर युद्ध होते, जिनमें लाखों करोड़ों लोगों की
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