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________________ 14] सकारात्मक अहिंसा समझ में नहीं आ रहा था कि उस बहिन का मन पसंद भोजन कैसे बनाया जाय, क्योंकि उनके घर में तो मांस पकता ही नहीं था। टालस्टॉय की पत्नी ने अपने पति के समक्ष अपनी यह कठिनाई रखी तो टालस्टॉय बोले-चिन्ता करने को कोई बात नहीं, मैं सब संभाल लूगा । टालस्टॉय जानते थे कि उनकी बहिन को मुर्गा पसंद है। टालस्टॉय ने एक बड़ा सा सुन्दर मुर्गा मंगवाया और उसे भोजन की मेज से बांध दिया तथा एक तेजधार वाला छरा भोजन की मेज पर रख दिया। टालस्टॉय की बहिन भोजन करने पाई और उसने देखा कि एक मुर्गा मेज से बंधा हुआ है तो उसने विस्मित होकर टॉलस्टाय से पूछा कि भाई ! इस मुर्गे को इस मेज से क्यों बांध रखा है ? ____टालस्टॉय ने कहा यह तो तुम्हारे भोजन की सामग्री है। हमारे यहां पर तो कोई मांस खाते नहीं हैं और न हम मांस को मानव के खाने योग्य भोजन मानते हैं, अतः हमारे में से तो कोई तुम्हारी पसंद का मुर्गे का आहार नहीं बना सकता। हमारा कर्त्तव्य तुम्हारा आतिथ्य सत्कार करना है । अत: यह मुर्गा और छुरा दोनों तुम्हारे सामने रख दिये हैं, प्रागे तुम्हारी जो इच्छा । यह सुनकर टालस्टॉय की बहिन विचार में पड़ गई। उसे सूझ नहीं पड़ रहा था कि वह क्या करे, कभी वह भोले-भाले सुन्दर, प्यारे मुर्गे की ओर देखती और कभी छुरे की तेज धार की ओर देखती। मुर्गे की आंखों की चमक व भोले भाले हाव-भाव से उसके हृदय में दया की लहरें उठने लगी। उसने कहा कि मैं इसे नहीं मार सकती। यह मुर्गा अपने रूप व हाव भाव से हृदय को प्रसन्न कर रहा है, मैं इसके प्राण नहीं ले सकती। उसके हृदय में कारुण्यभाव जगा और उसने सदा के लिए मांसाहार छोड़ दिया। इस प्रकार टालस्टॉय के कारुण्यभाव के प्रभाव के कारण लाखों लोग शाकाहारी बन गये । विदेशों में आज भी करोडों लोग शाकाहारी हैं और दिन प्रतिदिन पशु-पक्षियों के प्रति निर्दयता, क्रूरता के व्यवहार से उनके हृदय में संवेदनशीलता अधिकाधिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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