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सकारात्मक अहिंसा सर्व प्राणियों को दुःखी देखकर अंतःकरण का आर्द्र होना दया
'जीवाणं रक्खाणं धम्मो' कार्तिकेय अनुप्रंक्षा 478, दर्शन पाहुड 9-8-5
"सब जीवों की रक्षा करना धर्म है। "सो धम्मो जत्थ दया" (नियमसार-वृत्ति) जहां दया है, वहां धर्म है।
"दयादुःखार्तजन्तुत्राणाभिलाषः, अनगारधर्मामृत, स्वोपज्ञटीका 4-1
दुःखी जीवों के त्राण (रक्षा) करने की अभिलाषा दया है। "दयामूलो भवेद् धर्मो.......” महापुराण 5-21 धर्म का मूल दया है। "पढमं नाणं तो दया" दशवैकालिक सूत्र 4-14 प्रथम ज्ञान पीछे दया अर्थात् ज्ञान का फल दया है।
येषां जिनोपदेशेन कारुण्यामतपूरिते चित्त जीवदया नारित तेषां धर्मः कुतो भवेत् । मूलं क्षमतेराद्यं व्रतानां धाम संपदाम् गुणानां निधिरिति । दया कार्या विवेकिभिः-पद्मनंदिविंशति, 37 एवं 34
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दयालुता रूप अमृत से परिपूर्ण जिन श्रावकों के हृदय में जिन भगवान् के उपदेश से प्राणी-दया आविर्भूत नही होती उनको धर्म कहाँ हो सकता है । जीवदया धर्मरूपी वृक्ष की जड़ है, व्रतों में प्रधान व्रत है, ऐश्वर्य का घर है, और गुणों का भंडार है। इसलिए विवेकी जनों को जीव-दया अवश्य करनी चाहिए।
न तद्दानं न तद्ध्यानं न तज्ज्ञानं न तत्तपः । न सा दीक्षा न सा भिक्षा, दया यत्र न विद्यते ।।
जहां दया नहीं है, वहां न दान है, न वहां ध्यान है, न वह ज्ञान है, न वह तप है, न वह दीक्षा है और न वह भिक्षा है ।
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