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________________ अहिंसा का सकारात्मक रूप [ 9 55. पवित्रता 56. शुचिता 57. पूजत्व 58. विमलता 59 प्रभाषा और 60. निर्मलतर । इस प्रकार से ये निज आत्मा के गुरण द्वारा निष्पन्न अहिंसा भगवती के पर्यायवाची 60 नाम हैं । इनमें दया, रक्षा, पुष्टि, प्रमोद, श्रादि अनेक नाम विधि रूप अहिंसा के हैं । यह अहिंसाद्वार संवरद्वार है । अतः इसमें आए दया, रक्षा, प्रमोद श्रादि नाम संवररूप हैं । अतः कर्मबंध के कारण नहीं हैं । दया, रक्षा आदि से कर्मबंध मानना संवर को बंध मानना है जो श्रागमविरुद्ध है तथा तात्त्विक भूल है । संवर धर्म है । अतः दया, रक्षा, प्रादि अहिंसा के विधिपरक रूप धर्म हैं । इन्हें धर्म न मानना धर्म को अधर्म मानना है, धर्म को अधर्म मानना मिथ्यात्व है । जैसा कि स्थानांगसूत्र के ठाणा 10 में कहा है दस विहे मिच्छत्त पण्णत्ते तंजहा अधम्मे धम्मसण्णा, धम्मे अधम्मा सण्णा.... ... सूत्र 993 ........ अर्थात् दस प्रकार का मिथ्यात्व है यथा - 1. धर्म को धर्म श्रद्धे 2. धर्म को अधर्म श्रद्धे. ..तो मिथ्यात्व है । दया धर्म है, यह सिद्धान्त प्राचीनकाल में सर्वमान्य रहा है यथादयाधम्मस्सखतिए विप्पसीइज्ज मेहावी.... उत्तराध्ययन सूत्र 5/30 प्रर्थात् मेधावी साधक अपने को दया, धर्म और क्षमा से प्रसन्न रखे । " सव्वेहि भएहि दयाणुकंपी." उत्तराध्ययन 21 / 13 साधु सब जीवों के प्रति दया एवं अनुकम्पा का व्यवहार करता है । धर्मो जीव दया- पद्मनंदि पंचविंशति १७ - अर्थात् प्राणियों पर दयाभाव रखना, धर्म है । “धम्मोदया विसुद्धो" बोध पाहुड 25, दर्शन पाहुड 2-2-20 अर्थात् 'दया' विशुद्ध धर्म है । दया सर्वप्राणिविषया. . भगवती आराधना, Jain Education International For Private & Personal Use Only 1836 www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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