________________
अहिंसा का सकारात्मक रूप
[
5
की ही हिंसा करते हैं, शेष रहे अनंतानंत जीवों की हिंसा नहीं करते हैं । अतः वे सब भी अहिंसक ही कहलायेंगे। परन्तु ऐसा मन्तव्य उपयुक्त नहीं है । वास्तव में करुणा, अनुकंपा या दया का अर्थ किसी प्राणी को न मारने रूप अहिंसा तक ही सीमित नहीं है, प्रत्युत इसके विधेयात्मक रूप दान, सेवा, सहयोग, वात्सल्यभाव, मैत्री आदि भी इसमें सम्मिलित हैं। इन विधेयात्मक रूपों को निकाल देने पर अहिंसा का केवल निषेधात्मक रूप रह जाता है।
वस्तुतः गुण का निषेधात्मक अर्थ वाला रूप दोष के निषेध या अभाव का द्योतक होता है। दोष का अभाव तो होना ही चाहिए। कारण कि इससे सद्गुण की अभिव्यक्ति की भूमिका तैयार होती है, पात्रता आती है। जिसके बिना गुण का विधेयात्मक रूप फलित या प्रकट हो ही नहीं सकता । अतः गुरण का सद्भाव विधेयात्मक अर्थ में ही सन्निहित है, अभावात्मक अर्थ में नहीं । तात्पर्य यह निकला कि गुण सद्भावरूप होता है, अभावरूप नहीं । अतः अहिंसागुण दया या दानरूप होता है । दान आत्मा का निज गुरण है। इसलिए वीतराग देव में अनंतदान माना गया है। प्रात्मा के निजगुणों में दान-रूप विधेयात्मक दया व अहिंसा को स्थान दिया गया है, केवल निषेधात्मक अहिंसा को नहीं। जैसे 'अज्ञान' शब्द का अर्थ ज्ञान की कमी का द्योतक तो है ही साथ ही विपरीत ज्ञान का भी द्योतक है । ऐसे ही अहिंसा शब्द हिंसा की कमी का द्योतक तो है ही साथ ही हिंसा के विपरीत दया, दान, सेवा प्रादि का भी द्योतक है।
विधिपरक अहिंसा से रहित यदि केवल निषेधपरक अहिंसा को हो अपनाया जायेगा तो निष्ठुरता, स्वार्थपरता, क्रूरता, रूखापन, निष्क्रियता, अकर्मण्यता, असामाजिकता, संकीर्णता, आदि अगणित भयंकर दोष उत्पन्न हो जायेंगे जो उस व्यक्ति, समाज और विश्व के लिए घोर घातक सिद्ध होंगे।
निषेधात्मक अहिंसा का अपना स्थान है। यदि अहिंसा हिंसा से विपरीत न हुई तो विधिपरक अहिंसा की लोक-कल्याण, समाजसेवा, परोपकार आदि प्रवृत्तियों में हिंसा का समावेश हो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org