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________________ xliv 1 सकारात्मक अहिंसा प्राचार्यों और मुनिजनों की प्रेरणा निहित रही है । जैनधर्म में अहिंसा के इस सकारात्मक पक्ष का कितना मूल्य और महत्त्व है इसके लिए हम अपनी ओर से कुछ न कह कर प्रश्न-व्याकरणसूत्र के ही निम्न वचन उद्धृत करना चाहेंगे एसा सा भगवई अहिंसा जा सा भीयाणं विव सरणं, पक्खीणं विव गमणं, तिसियाणं विव सलिलं, खुहियाणं विव असणं, समुदमझे व पोयवहणं, चउप्पयाणं व प्रासमपयं, दुहट्ठियाणं व प्रोसहिबलं, प्रडवीमज्झे व सत्थगमणं, एत्तो विसिठ्ठतरिया अहिंसा जा सा पुढवी-जल-प्रगरिण-मारयवरणस्सइ-बीय-हरिय-जलयर-थलयर-खहयर-तस-थावर-सव्वभूयखेमंकरी। यह अहिंसा भगवती जो है, सो (संसार के समस्त) भयभीत प्राणियों के लिए शरणभूत है, पक्षियों के लिए आकाश में गमन करने-उड़ने के समान है, यह अहिंसा प्यास से पीड़ित प्राणियों के लिए जल के समान है, भूखों के लिए भोजन के समान है, समुद्र के मध्य में डूबते हुए जीवों के लिए जहाज के समान है, चतुष्पद-पशुओं के लिए आश्रम-स्थान के समान है, दुःखों से पीड़ित रोगीजनों के लिए औषध-बल के समान है, भयानक जंगल में सहयोगियों के साथ गमन करने के समान है। मात्र यही नहीं, भगवती अहिंसा तो इनसे भी अत्यन्त विशिष्ट है, यह त्रस ओर स्थावर सभी जीवों का क्षेम कुशल-मंगल करने वाली है। - यह लोक-मंगलकारी अहिंसा जन-जन के कल्याण में तभी सार्थक सिद्ध होगी, जब इसके सकारात्मक पक्ष को उभार कर जन-साधा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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