________________
भूमिका
[ xiv रण के समक्ष प्रस्तुत किया जायेगा और करुणा एवं सेवा की अन्तश्चेतना को जागृत किया जायेगा । मानव समाज में से हिंसा, संघर्ष और स्वार्थपरता के विष को तभी समाप्त किया जा सकेगा, जब हम दूसरों की पीड़ा का स्व-संवेदन करेंगे, उनकी पीड़ा हमारी पीड़ा बनेगी। इससे अहिंसा की जो धारा प्रवाहित होगी, वह सकारात्मक होगी और करुणा, मैत्री, सहयोग एवं सेवा के जीवन-मूल्यों को विश्व में स्थापित करेगी।
प्रस्तुत कृति में श्री कन्हैयालाल जी लोढ़ा ने अहिंसा के इस सकारात्मक पक्ष को अधिक स्पष्टता और आगमिक प्रमाणों के साथ प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। श्री कन्हैयालाल जी लोढ़ा जैनदर्शन के गम्भीर अध्येता हैं। उनकी लेखनी से प्रसूत यह ग्रन्थ अहिंसा के सकारात्मक पक्ष को जन-साधारण के समक्ष प्रस्तुत करने में सफल होगा । कृति के प्रकाशक श्री देवेन्द्रराजजी मेहता रोगियों और समाज के उपेक्षित एवं प्रताड़ित वर्ग की सेवा के कार्य में प्रारम्भ से ही जुड़े हुए हैं, वे सकारात्मक अहिंसा की जीवन्त प्रतिमूर्ति हैं । प्रस्तुत कृति का प्रणयन भी उन्हीं की प्रेरणा से हुआ है। कृति के उत्तरार्द्ध में विभिन्न विचारकों के विचारों का संकलन किया गया है । इससे भी अहिंसा के सकारात्मक पक्ष की पुष्टि में सहयोग मिलेगा।
प्रस्तुत कृति के माध्यम से जन-जन में निष्काम प्रेम, करुणा और सेवा की भावना जागृत हो एक इसी आशा के साथ ।
निदेशक पार्श्वनाथ शोधपीठ आई. टी. आई. रोड़, वाराणसी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org