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________________ जीव मात्र के लिए आदर विश्व की महान् विभूति अलबर्ट स्विट्जर ने विश्व के तमाम दार्शनिक सिद्धांतों का विवेचन करके एक परम उत्कृष्ट सिद्धांत हमें दिया है--- 'रेवरेन्स फार लाइफ' जीव मात्र के लिए आदर । स्विट्जर कहता है किसी भी व्यक्ति को सदाचारी या धार्मिक केवल तभी माना जा सकता है, जब उसके भीतर सतत यह प्रेरणा होती रहती है कि मैं जीव मात्र की यथा शक्ति सेवा करूं और किसी भी प्राणी को किसी भी प्रकार का क्लेश न पहुंचाऊं । उसके लिए प्रत्येक प्राणी का जीवन पवित्र है। वह किसी वृक्ष का पत्ता नहीं तोड़ता, कोई फूल नहीं तोड़ता । वह इस बात का ध्यान रखता है कि उसके पैरों तले कोई जीव कुचल न जाय । गर्मी के दिनों में रोशनी से यदि वह काम करता है तो वह खिड़की बन्द करके उमस में बैठना कबूल करता है, बजाय इसके कि पतंगे बाहर से आ-पाकर मेज पर शहीद हों। इस 'रेवरेन्स फार लाइफ' में-जीव मात्र के लिए आदर में-धर्म का सारतत्त्व प्रेम और करुणा ऊपर से नीचे तक ओतप्रोत है । यह प्रेम मानवमात्र के लिए ही नहीं. प्राणीमात्र के लिए है। पशु और पक्षी, कीट और पतंग कोई भी उससे अछूता नहीं रह सकता। स्विट्जर का कहना है कि 'रेवरेन्स फार लाइफ' का पुजारी हर काम को इस कसौटी पर कसेगा। वह सोचेगा कि मुझे अपने जीवन, अपनी सम्पत्ति, अपने अधिकार, अपने प्रानन्द, अपने समय और अपने सर्वस्व का कितना अंश दूसरों को अर्पित कर देना है और कितना रखना है। वह यदि प्रसन्न है तो अपने आपसे प्रश्न करेगा कि तुझे स्वास्थ्य, प्राकृतिक अनुदान, कार्यक्षमता, सफलता, सुन्दर बाल्यावस्था, उत्तम पारिवारिक परिस्थिति आदि बातों में अन्य लोगों की अपेक्षा जो अधिक सुविधा प्राप्त है, उसे तुझे यों ही सहज मानकर स्वीकार नहीं कर बैठना चाहिए । तुझे जीवन के लिए सामान्य से अधिक आदर व्यक्त करना चाहिए। जिसे अधिक मिला है वह अधिक त्याग करे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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