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सकारात्मक अहिंसा
अहिंसा की प्रक्रिया में जीवन के प्रति आदर को यह भावना अनिवार्य है। शरीरमात्र को, फिर वह अपना हो या पराया, पवित्र मंगलायतन मानना इसकी पहली सीढ़ी है । यों शरीर की पवित्रता तो न्याय भी स्वीकार करता है पर अहिंसा का पुजारी न्याय को परे रखकर गांधी के शब्दों में कहता है "मेरा धर्म न्याय नहीं, करुणा
संकलित
बलिदान-सेवा-चैरेटी
0 श्री महादेव भाई
सेक्रिफाइस (बलिदान) का सच्चा अर्थ यह है कि हम इसलिए मर जायें कि दूसरों को जीवन प्राप्त हो, हम कष्ट उठायें ताकि दूसरों को आराम मिले। __ दूसरों के लिए प्राण अर्पण करना प्रेम की पराकाष्ठा है और उसका शास्त्रीय नाम अहिंसा है अर्थात् यों कह सकते हैं कि अहिंसा ही सेवा है।
हिन्दी नवजीवन 15-9-27 'दया' और 'चैरिटी' इन दोनों शब्दों का धात्वर्थ एक जैसा ही है। दया में धातु 'दय्' है जिसका अर्थ होता है प्रेम करना, प्रिय मानना । इसी से दयिता (प्रिया) शब्द निकला है और चैरिटी के मूल में भी लेटिन 'केरस' प्रिय है। इसलिए जिसके प्रति हमारे मन में चैरिटी हो, दया हो, उसके लिए हमारा हृदय प्रेम से द्रवित होना हो चाहिए।
अहिंसा और सत्य, पृष्ठ 246
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