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________________ 286 ] सकारात्मक अहिंसा वस्तुतः 'मैत्री' शब्द का अर्थ पूर्णतया सकारात्मक है । मेरा मित्र वह है जो मेरी मदद करे। यहां सिर्फ अहित न करने की बात नहीं है, अपितु यहां हित करने की बात है। भ. महावीर ने कहा 'मित्ती मे सव्वभएसु वेर मज्झं ण केणइ' अर्थात् 'सब प्राणियों के प्रति मेरी मित्रता है । मेरा किसी के प्रति वैर भाव नहीं है।' यह मित्रता सबके प्रति स्नेह भाव की द्योतक है तथापि 'वेरं मज्झं न केणई' वाक्यांश के द्वारा वैर न करने का कथन अलग से किया गया है । इससे स्पष्ट मालूम होता है कि मैत्री सहायता करने के अर्थ में है। संस्कृत में भी 'मिद् स्नेहे' धातु से मित्र शब्द बना है, जिसका अर्थ 'स्नेह भाव रखने वाला' होता है। इस प्रकार यह मैत्री सकारात्मक स्वरूप का प्रतिपादन करती है। इस दृष्टि से भ. महावीर के अहिंसा सिद्धांत का पालन करें तो यह आवश्यक हो जाता है कि हम किसी की मदद करें, किसी की सेवा करें। जैन धर्म के अतिरिक्त अन्य श्रमण परम्पराओं में भी अहिंसा का सकारात्मक स्वरूप स्वीकारा गया है। विशेष रूप से महायान बौद्ध दर्शन में महाकरुणा की बात बार-बार कही गई है। अनुकम्पा को वहां धर्म का मूल बताया गया है। भगवान बुद्ध इस परम्परा के अनुसार यहां तक कह देते हैं कि मुझे मोक्ष नहीं चाहिए, ताकि मैं इस संसार में रहकर करुणा और दया के सिद्धान्त का प्रचार-प्रसार कर सकू। मित्रता के वाचक 'मेत्ति' शब्द का भी बौद्ध दर्शन में विशिष्ट महत्त्व है। यहां यह भी कहना उचित होगा कि अहिंसा एवं मैत्री दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जो भावना पर आधारित हैं। केवल स्थूल अहिंसा हो पर्याप्त नहीं है । यदि भावना रक्षा करने की रहते हुए किसी की हिंसा हो भी गई तो वह हिंसा 'हिंसा' की श्रेणी में नहीं आती। एक उदाहरण है जो अनेक बार दोहराया जाता है कि डॉक्टर किसी रोगी का आपरेशन उसे स्वस्थ करने के लिए करता है फिर भी यदि रोगी की मृत्यु हो जाय तो इसमें डॉक्टर को हत्यारा नहीं माना जाता। मैत्री का क्रियात्मक पक्ष है सेवा । इसे अहिंसा का भी क्रिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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