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________________ 284 1 सकारात्मक अहिंसा तो पा सकता है, पर मुक्ति नहीं। यह विचारधारा भ्रामक है तथा इससे जैन-धर्म-दर्शन का वास्तविक रूप विकृत हुआ है। इन विचारकों के अनुसार निवृत्ति ही धर्म है और प्रवृत्ति चाहे शुभ से सम्बद्ध हो तो भी बन्ध का ही कारण है । किन्तु यह विचारधारा असंगत एवं अधार्मिक है। भारतीय परम्परा में 'अहिंसा' शब्द की संरचना नकारात्मक (न हिंसा इति अहिंसा) अवश्य है, किन्तु इसमें सकारात्मक अर्थ पूर्णतः सन्निहित है। उसका प्रमाण है प्रश्नव्याकरण सूत्र, जिसमें अहिंसा के साठ नामों में दया, मंगल, अभय आदि शब्दों की गणना है। ये शब्द मात्र हिंसा के अभाव के द्योतक नहीं हैं, अपितु हिंसा के विरोधी भाव करुणा, अनुकम्पा, मैत्री, सेवा आदि के भी बोधक हैं। संस्कृत में निषेध अर्थ में प्रयुक्त नञ् (न = प्र) के छह अर्थ माने गए हैं-तत्सदृश, अभाव, उससे भिन्न, उससे अल्प, अप्रशस्त एवं विरोध । 'अहिंसा' शब्द में अ (नञ्) के दो अर्थ प्रयुक्त हुए हैंप्रभाव एवं विरोध । एक तो हिंसा का अभाव अहिंसा है और दूसरा हिंसा का विरोधी भाव एवं प्रवृत्ति जैसे करुणा, दया, अनुकम्पा, मैत्री, सेवा आदि अहिंसा है। परम्परा के प्रवाह में अहिंसा का शाब्दिक अर्थ केवल हिंसा नहीं करना ही हो गया । वास्तव में किसी जीव की हिंसा नहीं करना तो आवश्यक है ही, परन्तु अहिंसा का मूलाधार और स्वरूप, करुणा, अनुकम्पा और वात्सल्य है। यहां यह भी उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि अगर अहिंसा का अर्थ सकारात्मक नहीं है तो अहिंसा धार्मिक, नैतिक अथवा आत्मउत्थान के सिद्धान्त के रूप में अर्थहीन है। केवल नकारात्मक विचारधारा के आधार पर कोई भी व्यवस्था या संगठन खड़ा नहीं रह सकता। समस्त जैन सम्प्रदायों को मान्य 'तत्त्वार्थसूत्र' के अनुसार तब तक मुक्ति नहीं हो सकती जब तक संयुक्त रूप से सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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