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सर्वहितकारी प्रवृत्ति और सेवा
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79. वस्तुओं का सदुपयोग प्राणियों की सेवा में ही निहित है।
80. संसार के काम आने पर ही संसार की दासता से रहित हुमा जा सकता है।
81. सम्बन्ध रखते हुए सेवा न करना बन्धन है। 82. समस्त बल निर्बलों की ही वस्तु है।
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