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________________ सेवा-धर्म [ 243 पर यदि वह उन सेवाओं को भूल जाता है और घमंड में पाकर अपने उन उपकारी सेवकों की, माता-पितादिकों की सेवा नहीं करता, उनका तिरस्कार तक करने लगता है तो समझना चाहिए कि वह पतन की ओर जा रहा है । ऐसे लोगों को संसार में कृतघ्न, गुणमेट और अहसानफरामोश जैसे दुर्नामों से पुकारा जाता है । कृतघ्नता अथवा दूसरों के किये हुए उपकारों और ली हुई सेवाओं को भूल जाना बहुत बड़ा अपराध है और वह विश्वासघातादि की तरह ऐसा बड़ा पाप है कि उसके भार से पृथ्वी भी काँपती है। किसी कवि ने ठीक कहा है करै विश्वासघात जो कोय, कीया कृत को विसरै जोय । आपद पड़े मित्र परिहरै, तासु भार धरणी थरहरै ।। ऐसे ही पापों का भार बढ़ जाने से पृथ्वी अक्सर डोला करती हैभूकम्प प्राया करते हैं । और इसीसे जो साधु पुरुष-भले आदमीहोते हैं वे दूसरों के किए हुए उपकारों अथवा ली हुई सेवाओं को कभी भूलते नहीं हैं--'न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति'-- बदले में अपने उपकारियों की अथवा उनके आदर्शानुसार दूसरों की सेवा करके ऋणमुक्त होते रहते हैं। उनका सिद्धांत तो 'परोपकाराय सतां विभूतयः' की नीति का अनुसरण करते हुए प्रायः यह होता है : उपकारिषु यः लाधुः साधुत्वे तस्य को गुणः ? अपकारिषु यः साधुः स साधुः सद्भिरुच्यते ॥ - अर्थात् अपने उपकारियों के प्रति जो साधुता का, प्रत्युपकारादिरूप सेवा का व्यवहार करता है उसके उस साधुपन में कौनसी बड़ाई की बात है ? ऐसा करना तो साधारण जनोचित मामूली-सी बात है। सत्पुरुषों ने उसे सच्चा साधु बतलाया है जो अपना अपकार एवं बुरा करने वालों के प्रति भी साधुता का व्यवहार करता है, उनकी सेवा करके आत्मा से शत्रुता के विष को ही निकाल देना अपना कर्तव्य समझता है । ऐसे साधु पुरुषों की दृष्टि में उपकारी, अनुपकारी और अपकारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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