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करुणा मोह का अंश नहीं ध्वंस है
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दूसरों का दुःख-दर्द देखकर भी नहीं आ सकता कभी जिसे पसीना है ऐसा तुम्हारा जीना फिर भी ऋषि-सन्तों का सदुपदेश सदादेश हमें यही मिला कि पापी से नहीं पाप से पंकज से नहीं पंक से घृणा करो। नर से नारायण बनो समयोचित कर कार्य ।
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करुणा हेय नही, करुणा की अपनी उपादेयता है अपनी सीमा..." फिर भी, करुणा की सही स्थिति समझना है करुणा करने वाला अहं का पोषक भले ही बने परन्तु स्वयं को गुरु-शिष्य अवश्य समझता है और
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