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जिस पर करुणा की जा रही है वह स्वयं को शिशु-शिष्य
अवश्य समझता है ।
दोनों का मन द्रवीभूत होता है
शिष्य शरण लेकर
गुरु शरण देकर
कुछ अपूर्व अनुभव करते हैं पर इसे
सही सुख नहीं कह सकते हम दुःख मिटने का
और
सकारात्मक हिंसा
सुख मिलने का द्वार खुला अवश्य फिर भी ये दोनों
दुःख को भूल जाते हैं इस घड़ी में ।
(5)
करुणा की दो स्थितियाँ होती हैंएक विषय लोलुपिनी
दूसरी विषय- लोपिनी दिशा-बोधिनी पहली की चर्चा यहाँ नहीं है चर्चा-अर्चा दूसरी की है । इस करुणा का स्वाद
किन शब्दों में कहूं गर यकीन हो नमकीन स्वाद है वह |
सूत्रों का
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