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सकारात्मक अहिंसा
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(2) पर पर दया करना बहिर्ड ष्टि-सा मोह-मूढता-सा...' स्व-परिचय से वंचित-सा.... अध्यात्म से दूर... प्रायः लगता है
ऐसी एकान्त धारणा से - अध्यात्म की विराधना होती है। क्योंकि, सुनो ! स्व के साथ पर का और पर के साथ स्व का ज्ञान होता ही है, गौण-मुख्यता भले ही हो। चन्द्र-मण्डल को देखते हैं नभ-मण्डल भी दीखता है। पर की दया करने से स्व की याद आती है और स्व की याद ही स्व-दया है विलोम-रूप से भी यही अर्थ निकलता है या-द-द-या...।
(3) मैं तुम्हें, हृदय-शून्य तो नहीं कहूँगा
परन्तु
पाषाण-हृदय अवश्य है तुम्हारा,
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