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करुणा मोह का अंश नहीं, ध्वंस है
श्राचार्य श्री विद्यासागर जी म.
(1)
वासना का विलास मोह है । दया का विकास मोक्ष है ।
एक जीवन को बुरी तरह जलाती है भयंकर है, अंगार है ।
एक जीवन को पूरी तरह जिलाती है शुभंकर है, शृंगार है । हाँ ! हाँ !!
अधूरी दया करुणा
मोह का अंश नहीं है
अपितु प्रशिक मोह का ध्वंस है । वासना की जीवन - परिधि
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श्रचेतन है " "वन है । दया करुणा निरवधि है करुणा का केन्द्र वह संवेदन धर्मा चेतन है पीयूष का निकेतन है । करुणा की कणिका से
अविरल झरती है
समता की सौरभ सुगंध ऐसी स्थिति में
कौन कहता है
कि
करुणा का वासना से सम्बन्ध है ।
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