________________
अहिंसा का वैज्ञानिक प्रस्थान
[
227
पापी या पतित नहीं कह सकते, उनसे घृणा भी नहीं कर सकते । दुनिया में बहमत उनका है। उनकी धर्मबुद्धि और हमारी धर्मबुद्धि में फर्क है। ऐसे करोड़ों हिन्दू हैं, जो पूज्यभाव के कारण गाय-बैल का मांस नहीं खाते, किन्तु इतर पशु-पक्षियों का मांस खाते हैं । ऐसे भी हिन्दू हैं जो बतक के अंडे खाते हैं, किन्तु घणा के कारण मुर्गी के अंडे नहीं खाते । मुसलमान ऐसी ही घृणा के कारण सूअर का मांस नहीं खाते । यहूदियों के भी अपने नियम हैं । और, हिन्दुओं में भी गोमांस खाने वाले नहीं सो नहीं।
यह सारा विस्तार इसलिये किया है कि हम केवल आदर और तिरस्कार पर आधारित मनोवृत्ति के वश न होकर वैज्ञानिक ढंग से प्रयोग करते जायँ और सब के प्रति हम सहानुभूति रखें।
और, अब अहिंसा की हमारी साधना को केवल शास्त्र-वचनों पर धार्मिक रस्म-रिवाजों पर आधारित न रखकर उसे वैज्ञानिक संशोधन का विषय बनावें।
आज तक पशु-हिसा, निरामिषाहार, तपस्या और आहार-शुद्धि इतनी ही दृष्टि को प्रधान बना कर अहिंसा का विचार और प्रचार किया और पुराने जमाने की स्थूल वैज्ञानिक दृष्टि के अनुसार एकेन्द्रिय प्राणी, पंचेन्द्रिय प्राणी आदि भेदों की बुनियाद पर अहिंसा के नियम बनाये । अब जब विज्ञान और खास करके जीव विज्ञान बहुत कुछ बढ़ा है और हम नई बुनियाद लेकर जीव विज्ञान बढ़ा सकते हैं, तब पुराने, कालग्रस्त जीव विज्ञान से हम संतोष न मानें। जो बुनियाद मजबूत नहीं है उसे छोड़ दें और वचन-प्रामाण्य एवं पुराने धर्मकारों के अनुयायित्व से संतोष न मान · कर आध्यात्मिक दृष्टि से नये-नये प्रयोग करने के लिए हम तैयार हो जाएँ।
इसके लिए पश्चिम की प्रयोगशालाओं से भिन्न अहिंसा-परायण प्रयोगशालाओं की स्थापना करनी होगी। प्रयोग-वीर अध्यापक उसमें काम करेंगे। सिद्धान्त और व्यवहार का समन्वय करके मानव जाति के उत्कर्ष के लिए वे नसीहत देते जायेंगे । उनकी नसीहत धर्म
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org