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________________ 226 ] सकारात्मक अहिंसा नहीं सकते, लेकिन इन्हें मारने का, इन्हें लटने का, इनके परिश्रम से लाभ उठाने का हमें कोई नैतिक अधिकार नहीं है। इसलिये यह सारी स्वार्थी प्रवृत्ति घटाने की हमारी कोशिश होनी चाहिये । अहिंसा और मानवता की दृष्टि से हमें एक ऐसा क्रम बाँधना होगा, जिसके द्वारा अपने जीवन में हम हिंसा को उत्तरोत्तर कम करते जायं । आज गाय, बैल, भैंसे आदि बड़े-बड़े जानवरों को अभयदान दिया, कल बकरे, मेंढे, दुबे, हिरण आदि छोटे जानवरों को मारना छोड़ दिया, परसों मांसाहार में मछलियाँ और अंडे के बाहर मांसाहार न करने का नियम बनाया, आगे जाकर प्राणी के शरीर से उत्पन्न होने वाले दूध, घी आदि स्वाभाविक आहार की मदद लेकर धान्य, फल, सब्जी, कंदमूल प्रादि अन्नाहार से संतोष माना, उसके बाद हिम्मत पूर्वक दूध आदि पदार्थ अंडे के जैसे ही त्याज्य मानकर उनके बिना चलाने की कोशिशें करना और दूध, घी आदि मांसाहार के प्रतीकों की जगह वनस्पति में से हम क्या-क्या पैदा कर सकते हैं इसके प्रयोग करना, यह होगी हमारी अहिंसावृत्ति की शोध खोज। अगर दूध देने वाली गाय पवित्र है, तो शहद देने वाली मधुमक्खी भी उतनी ही पवित्र है। गौहत्या महापाप है तो शहद की मक्खियों को मारना, उनके छत्तों का नाश करना, धुआँ और आग के प्रयोग से उनका नाश करना, यह सब हिंसा है, घातकता है और अनावश्यक क्रूरता है, यह भी समाज को समझाना चाहिये। रेशम के लिये जो हम कीट-सृष्टि में भयानक संहार चलाते हैं उसका भी हमें विचार करना होगा । इसमें इतना कहने से नहीं चलेगा कि इतनी हिंसा हम मान्य रखते हैं, बाकी की मान्य नहीं रखते। केवल मान्यता की ही बात सोची जाय तो उसमें अनेक पंथ पैदा होंगे ही और ऐसे पंथों को मान्य रखना ही धर्म्य होगा। __ मनुष्य को मार कर खाने वाले समाज भी इस दुनिया में थे। प्राचोन या मध्यकालीन जैन मुनियों ने ऐसे लोगों के बीच जाकर भी उन्हें अहिंसा की ओर आकृष्ट किया। इसके आगे जाकर पशुपक्षी का मांस खाने वाले लोगों ने गाय-बैल का मांस छोड़ा, यह भी एक प्रगति हुई । लेकिन इतने पर से गाय-बैल का मांस खाने वाले को हम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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