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________________ अहिंसा का वैज्ञानिक प्रस्थान [ 225 धातु, यह सारी भौतिक सृष्टि मनुष्य के उपयोग के लिये है, उसी तरह सारी-की-सारी मनुष्येतर सृष्टि भी मनुष्य के उपयोग के लिये है । वृक्ष, वनस्पति, कंद मूल, फल प्रादि वनस्पति-सृष्टि मनुष्य के उपभोग के लिये है; उसी तरह कीट-सृष्टि, पशु-पक्षी, आदि द्विपाद, चतुष्पाद और बहुपाद प्राणियों की सृष्टि; पशु-पक्षी आदि स्थलचर, साँप आदि सरिसृप और मछलियाँ आदि जलचर सब मनुष्य के आहार के लिये, सेवा के लिये, उपभोग और आनन्द के लिये हैं । इन्हें मार कर खाना, पकड़ कर काम में लाना और उन पर अपना स्वामित्व रखना यह सब मनुष्य के अधिकार में आता है। (2) अगर इनकी संख्या कम होने लगी तो इनकी पैदाइश बढ़े, इनकी नई-नई नस्लें तैयार हो जायें और इनसे अधिकाधिक सेवा मिल जाय इसलिये सब तरह से पुरुषार्थ करने का भी मनुष्य को अधिकार है। (3) वनस्पति-सृष्टि का और प्राणसृष्टि का उपयोग करते अगर कुछ नुकसान होता है, रोग होते हैं, बाधायें पहुँचती हैं, खतरे उठाने पड़ते हैं तो अपनी बुद्धि चलाकर इन सब चीजों का और प्राणियों का उपभोग निराबाध बन सके इसका इलाज भी हूँ ढना है। (4) और, इस तरह से वनस्पति और प्राणि-सृष्टि पर अधिकार जमने के बाद उनसे जो लाभ होता है वह सारी-की-सारी मनुष्य जाति को मिल सके इसलिये आवश्यक है वैज्ञानिक संशोधन करना, संगठन बढ़ाने की शक्ति बढ़ाना और अधिक-से-अधिक लाभ प्रासानी से मिल सके ऐसी व्यवस्था काम में लाना । इन चारों पुरुषार्थों में मूल विचार है स्वामित्व प्राप्त करके उपभोग करने का । अहिंसा का प्रस्थान बिलकुल इसके विपरीत होगा। इसलिये हमारी फिजिकल लैबोरेटरी में वैज्ञानिक प्रयोगशाला में, एनिमल हसबेंडरी में-पशु-संवर्धन में हमारी दृष्टि ही अलग होगी। हम कहेंगे कि वनस्पति, पशु-पक्षी आदि मनुष्येतर जीव-सृष्टि को जीने का स्वतन्त्र अधिकार है। न हम उनके मालिक हैं, न उन पर हमारा कोई अधिकार है । बात सही है कि इनके बिना हम जी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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