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मनुष्य और सेवाधर्म
- श्री केदारनाथ
सेवावृत्ति का महत्त्व
हम मानते हैं कि मनुष्य अपने बौद्धिक बल से जगत् में सर्वश्रेष्ठ सिद्ध हुआ है । परन्तु यह पूर्णतया सही नहीं है । थोड़ा विचार करने से हमारे खयाल में आ सकता है कि श्रेष्ठता उसे केवल बौद्धिक बल से प्राप्त नहीं हुई है। उसका कारण मनुष्य के अन्य कई सद्गुण हैं। बौद्धिक विकास के साथ यदि मनुष्य का मानसिक विकास न हुआ होता, तो उसमें आज की मानवता न दिखाई देती; वह एक बुद्धिमान् पशु बन गया होता और बुद्धि की वृद्धि के साथ उसमें केवल पशुता की वृद्धि ही दिखाई देती। मनुष्य में मानवता उत्पन्न होने में जो सद्गुण और सद् वृत्तियां कारणभूत बनी हैं, उसमें सेवावृत्ति का बहुत बड़ा महत्त्व समजाना चाहिए। प्रेम, वात्सल्य, माता-पिता का भाव, करुणा, मैत्री, परोपकार आदि सारे भावों और भावनाओं का सेवावृत्ति के साथ निकट का सम्बन्ध है। इस सेवावृत्ति में से ही सेवाधर्म का उदय हुआ है। इस धर्म के ही कारण वात्सल्य का महत्त्व है। मात-पित भाव का सम्बन्ध वात्सल्य के साथ ही है। इतना ही नहीं, वात्सल्य ही माता-पिता की सम्पत्ति है और वही उनकी वास्तविक शक्ति है। इस वात्सल्य से ही उनकी सेवावृत्ति प्रकट होती है। उस वात्सल्य और उस सेवावृत्ति के कारण भावी पीढ़ी का पोषण, संगोपन और संवर्धन होता है। वात्सल्य के द्वारा किसी भी माता को स्वयं कष्ट, मुसीबतें और दुःख सहन करके अपने बालकों को सुखी बनाने की शिक्षा मिलती है । सेवा की अत्यन्त उत्कट भावना और उसके अनुरूप कार्य इस वात्सल्य से ही प्रकट होते हैं ।
प्रत्येक मनुष्य को सेवा का प्रथम लाभ उसकी माता से मिलता है। माता के हृदय के वात्सल्य से ही उसकी वृद्धि होती है । पैदा हुआ बालक अपनी माता से अनेक प्रकार की सेवा लेते-लेते मनुष्य बनता
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