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________________ 200 ] सकारात्मक हिंसा बाड़ी और उद्योग-धन्धे अपने अस्तित्व के लिए बुद्धि, धन, परिश्रम और साहस की अपेक्षा कर रहे हैं । अतएव गृहस्थों का यह धर्म हो जाता है कि वे संपत्ति का उपयोग तथा विनियोग राष्ट्र के लिए करें । वे गाँधीजी के ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त को अमल में लाएँ । बुद्धिसंपन्न और साहसिकों का धर्म है कि वे नम्र बनकर ऐसे ही कामों में लग जाएँ जो राष्ट्र के लिए विधायक हैं। दलितों और अस्पृश्यों को भाई की तरह बिना अपनाएं कौन यह कह सकेगा कि मैं जैन हूँ ? खादी और ऐसे दूसरे उद्योग जो अधिक से अधिक अहिंसा के नजदीक हैं और एक मात्र आत्मौपम्य एवं अपरिग्रह धर्म के पोषक हैं उनको उत्तेजना दिये बिना कौन कह सकेगा कि मैं अहिंसा का उपासक हूँ ? अतएव उपसंहार में इतना ही कहना चाहता हूँ कि जैन लोग, निरर्थक आडम्बरों और शक्ति के अपव्ययकारी प्रसंगों में अपनी संस्कृति सुरक्षित है, यह भ्रम छोड़कर उसके हृदय की रक्षा का प्रयत्न करें, जिसमें हिन्दू और मुसलमानों का ही क्या, सभी कौमों का मेल भी निहित है। संस्कृति का संकेत } संस्कृति मात्र का संकेत लोभ और मोह को घटाने व निर्मूल करने का है, न कि प्रवृत्ति को निर्मूल करने का । वही प्रवृत्ति त्याज्य है जो सक्ति के बिना कभी संभव ही नहीं, जैसे कामाचार व वैयक्तिक परिग्रह आदि । जो प्रवृत्तियाँ समाज का धारण, पोषण, विकसन करनेवालो हैं वे आसक्तिपूर्वक और आसक्ति के सिवाय भी संभव हैं । अतएव संस्कृति आसक्ति के त्यागमात्र का संकेत करती है । जैनसंस्कृति यदि संस्कृति - सामान्य का अपवाद बने तो वह विकृत बनकर अंत में मिट सकती है । संदर्भ 1 यद्यपि शास्त्रीय शब्दों का स्थूल श्रथं साधु-जीवन का ग्राहार, विहार, निहार सम्बन्धी चर्या तक ही सीमित जान पड़ता है पर इसका तात्पर्य जीवन के सब क्षेत्रों की सब प्रवृत्तियों में यतना लागू करने का है । अगर ऐसा तात्पर्य न हो, तो यतना की व्याप्ति इतनी कम हो जाती है कि फिर वह यतना हिंसा सिद्धान्त की समर्थ बाजू बन नहीं सकती । समिति शब्द का तात्पर्य भी जीवन की सब प्रवृत्तियो से है, न कि शब्दों में गिनाई हुई केवल माहार-विहार- निहार जैसी प्रवृत्तियों से । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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