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________________ [ 199 निवृत्ति और प्रवृत्ति जैन-परम्परा में प्रथम स्थान है त्यागियों का, दूसरा स्थान है गृहस्थों का । त्यागियों को जो पाँच महाव्रत धारण करने की प्राज्ञा है वह अधिकाधिक सद्गुणों में प्रवृत्ति करने की या सद्गुण-पोषकप्रवृत्ति के लिए बल पैदा करने की प्राथमिक शर्त मात्र है। हिंसा, असत्य, चोरी, परिग्रह आदि दोषों से बिना बचे सद्गुणों में प्रवृत्ति हो हो नहीं सकती और सद्गुणपोषक प्रवृत्ति को जीवन में स्थान दिये बिना हिंसा आदि से बचे रहना भी सर्वथा असम्भव है। इस देश में जो लोग दूसरे निवृत्ति-पंथों को तरह जैन-पंथ में भी एक मात्र निवृत्ति की ऐकान्तिक साधना की बात करते हैं वे उक्त सत्य भल जाते हैं। जो व्यक्ति सार्वभौम महाव्रतों को धारण करने की शक्ति नहीं रखते उनके लिए जैन-परम्परा में अणव्रतों की सष्टि करके धीरे-धीरे निवृत्ति की ओर आगे बढ़ने का मार्ग भी रखा है। ऐसे गृहस्थों के लिए हिंसा आदि दोषों से अंशतः बचने का विधान किया है । उसका मतलब यही है कि गृहस्थ पहले दोषों से बचने का अभ्यास करें। किन्तु साथ ही यह आदेश है कि जिस जिस दोष को वे दूर करें उस-उस दोष के विरोधी सदगणों को जीवन में स्थान देते जाएँ। हिंसा को दूर करना हो तो प्रेम और प्रात्मौपम्य के सद्गुण को जीवन में व्यक्त करना होगा। सत्य बिना बाले और सत्य बोलने का बल बिना पाए असत्य से निवृत्ति कैसे होगी ? परिग्रह और लोभ से बचना हो तो सन्तोष और त्याग जैसी गुण पोषक प्रवृत्तियों में अपने आप को खपाना ही होगा। इस बात को ध्यान में रखकर जैन-संस्कृति पर यदि आज विचार किया जाए तो आजकल की कसौटी के काल में जैनों के लिए नीचे लिखी बातें कर्तव्यरूप फलित होती हैं। जैन-वर्ग का कर्तव्य __1-देश में निरक्षरता, बहम और आलस्य व्याप्त है। जहाँ देखो वहाँ फट ही फूट है। शराब और दूसरी नशीली चीजें जड़ पकड़ बैठो हैं । दुष्काल, अति-वृष्टि, परराज्य और युद्ध के कारण मानव-जीवन का एक मात्र आधार पशुधन नाम शेष हो रहा है। अतएव इस संबंध में विधायक प्रवृत्तियों की ओर सारे त्यागो वर्ग का ध्यान जाना चाहिए। 2- देश में गरीबी और बेकारी की कोई सीमा नहीं है। खेती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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