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सकारात्मक अहिंसा
1. मोहयुक्त-करुणा 2. असुख-करुणा 3. संवेग करुणा
4. अन्यहित-करुणा इन चारों प्रकार की करुणा को समझ लो । करुणा का इतना तलस्पर्शी विवेचन दूसरे ग्रन्थों में नहीं मिलता है । हरिभद्रसूरिजी ने मनोवैज्ञानिक ढंग से 'षोड़शक' में बहुत ही अच्छा विवेचन किया है।
1. मोहयुक्त करुणा-- एक करुणा मोह अथवा अज्ञानमूलक होती है। जैसे, एक मां है, उसका लड़का बीमार पड़ा, वैद्य-डॉक्टर ने कहा है : 'इस बच्चे को मिठाई मत खिलाना, तला हुआ कोई पदार्थ मत खिलाना ।' घर में मिठाई बनी है, लड़का मिठाई मांगता है मां को लड़के के प्रति खूब प्रेम है, प्रेम के बहाव में वह लड़के को मिठाई खिला देती है । इसको अज्ञानमूलक, मोहजन्य करुणा कहते हैं। माता को ज्ञान नहीं कि मिठाई खाने से लड़के का ज्वर बढ़ जायेगा, बीमारी बढ़ जायेगी ।' स्वास्थ्य विषयक अज्ञानता के कारण वह खिला देती है मिठाई।
2. प्रसुख-करुणा-असुख यानी दुःख । जिसके पास सुख के साधन नहीं है, रहने को घर नहीं, पहनने को वस्त्र नहीं, खाने को अन्न नहीं ऐसे मनुष्यों को मकान, वस्त्र, भोजन आदि देना, करुणा का दूसरा प्रकार है । कोई बीमार है, उसको दवाई देना, सेवा करना, किसी की संकट में सहायता करना, उपद्रव से मुक्त करना वगैरह का करुणा के दूसरे प्रकार में ही समावेश होता है।
दुःखी जीवों के प्रति हृदय में अत्यन्त करुणा होनी चाहिए। जिस मनुष्य में ऐसी करुणा होती है, वह अपने सुख-दुःख का विचार नहीं करता है । अपना सुख देकर भी वह दूसरों के दुःख दूर करने का प्रयत्न करता है।
3. संवेग-करुणा-संवेग का अर्थ होता है मोक्ष की अभिलाषा । जिस पुरुष में ऐसी मोक्षाभिलाषा पैदा हुई हो, वह चाहता है कि 'मैं
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