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सकारात्मक प्रहिंसा
विषय में कहा गया है सरिता में से, यदि पक्षी थोड़ा जल पान कर लेता है, तो क्या उसका पानी कम पड़ जाएगा ? नहीं। ठीक इसी प्रकार दान देने से भी धन घटता नहीं है।' स्वामी रामतीर्थ ने दान के सम्बन्ध में कहा है-'दान देना ही धन पाने का एक मात्र द्वार है।' सन्त विनोबा ने कहा है - 'बुद्धि और भावना के सहयोग से जो क्रिया होती है, वही सुन्दर है । दान का अर्थ-फेंकना नहीं, बल्कि बोना ही है।' __भारत के अपने धर्मों के समान बाहर से आकर पनपे ईसाई और मुस्लिम धर्मों में भी दान का बड़ा ही महत्त्व माना गया है। बाइबिल और कुरान में भी ईसा और मुहम्मद ने अनेक स्थलों पर दान की महिमा का यथाप्रसंग वर्णन ही नहीं किया, बल्कि उस पर पर्याप्त बल भी डाला है। दान के अभाव में ईसा मनुष्य का कल्याण नहीं मानते थे। ईसा ने प्रार्थना और सेवा पर विशेष बल दिया था, पर दान को भी कम महत्त्व नहीं दिया। बाइबिल में दान के विषय में कहा गया है 'तुम्हारा दाँया हाथ जो देता है, उसे बाँया हाथ न जान सके, ऐसा दान दो।' इस कथन का अभिप्राय इतना ही है, कि दान देकर उसका प्रचार मत करो । अपनी प्रशंसा मत करो। जो दे दिया, सो दे दिया । उसका कथन भी न करो। कुरान में दान के सम्बन्ध में बहुत ही सुन्दर कहा गया है 'प्रार्थना ईश्वर की तरफ प्राधे रास्ते तक ले जाती है । उपवास महल के द्वार तक पहुँचा देता है, और दान से हम अन्दर प्रवेश करते हैं ।' इस कथन से यह स्पष्ट हो जाता है, कि जीवन में दान का कितना महत्त्व रहा है। प्रार्थना और उपवास से भी अधिक महत्त्व यहाँ पर दान का माना गया है। मुस्लिम विद्वान् शेखसादी ने कहा है- 'दानी के पास धन नहीं होता और धनी कभी दानी नहीं होता।' कितनी सुन्दर बात कही गई है। जिसमें देने की शक्ति है, उसके पास देने को कुछ भी नहीं, और जिसमें देने की शक्ति न हो उसके पास सब कुछ इकठ्ठा होता रहता है। अतः दान देना, उतना सरल नहीं है, जितना समझ लिया गया है। दान से बढ़कर, अन्य कोई पवित्र धर्म नहीं है ।
जो अपनी सम्पदा की जोड़-जोड़कर जमा करता रहता है। उस
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