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________________ 158 1 सकारात्मक हिसा आगमों में बताया है - तीर्थंकरदेव दीक्षा लेने से पहले वर्षीदान देते हैं ?" यह दान कौन लेते हैं ? क्या त्यागी श्रमण, संयती यह दान लेने जाते हैं ? नहीं । यह दान लेने जाते हैं - कृपण, दीन, भिक्षुक, अनाथ आदि ऐसे व्यक्ति जिन्हें स्वर्ण मणि आदि की आवश्यकता या कामना है, और वे तो स्पष्ट ही अव्रती या व्रताव्रती ( श्रावक ) की कोटि में ही आयेंगे । तो क्या उन लोगों को दान देने में तीर्थंकर देव को संवर रूप धर्म होता है ? नहीं, किन्तु हमारे पड़ौसी सम्प्रदाय की मान्यता के अनुसार अगर उसमें धर्म नहीं है तो एकान्त पाप ही है ? जबकि अन्य समस्त जैनाचार्यों ने इस दान को पुण्य हेतुक माना है । और वास्तव में ही वह पुण्य है । अगर पुण्य नहीं होता तो तीर्थंकर देव - भगवान् महावीर आदि दीक्षा लेने के पूर्व इतना बड़ा पाप कृत्य क्यों करते ? इधर तो करोड़ों अरबों-खरबों स्वर्णमुद्राओं का दान और इधर पाप का बन्धन | क्या समझदारी है ? अतः इस एक उदाहरण से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि जिस कार्य में धर्म नहीं हो, उसमें भी पुण्य हो सकता है । बहुत से कृत्य धर्मवर्द्धक नहीं हैं, किन्तु पुण्यकारक हैं, जैसे तीर्थंकरों का वर्षीदान । रायपसेणी सूत्र में राजा प्रदेशी का जीवनवृत्त है । वह जब केशीकुमार श्रमण से श्रावकधर्म अंगीकार करता है तब अपने राज्य कोष को चार भागों में बाँटता है । जिसके एक भाग में वह अपने राज्य में दानशालाएँ, भोजनशालाएँ, औषधालय, कुएँ, अनाथाश्रम आदि खुलवाता है जहाँ हजारों अनाथ, रुग्ण, भिक्षुक आदि आकर आश्रय लेते हैं, अपनी क्षुधा पिपासा शांत करते हैं और औषधि प्रादि प्राप्त कर स्वास्थ्य लाभ लेते हैं । अगर इन प्रवृत्तियों में पुण्य नहीं होता तो केशीकुमार भ्रमण अपने श्रावक राजा प्रदेशी को स्पष्ट ही कह देतेयह कार्य पुण्य का नहीं है, अतः करने में क्या लाभ है ? और फिर श्रावक व्रतधारी चतुर राजा भी यह सब आयोजन क्यों करता ? अतः आगम की इस घटना से भी स्पष्ट सूचित होता है कि बहुत से अनुकम्पापूर्ण कार्यों में धर्म भले ही न हो, किन्तु पुण्यबन्ध तो होता ही है और इसी पुण्य हेतु व्यक्ति शुभ प्राचरण करता है । इससे दीनअनाथ एवं अनुकम्पा पात्र व्यक्तियों को भी सुखसाता पहुँचती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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