SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 146 1 सकारात्मक हिंसा क्या है ? उसके साथ जन सेवा का कितना अधिक घनिष्ठ सम्बन्ध है ? जहाँ तक मैं समझ पाया हूं, संस्कृति व्यक्ति की नहीं होती, समाज की होती है, और समाज की संस्कृति का यह अर्थ है कि समाज अधिक-से-अधिक सेवा की भावना से ओत-प्रोत हो, उसमें द्वेष नहीं, प्रेम हो; द्वैत नहीं, अद्वैत हो; एक रंग-ढंग हो, एक रहन-सहन हो, एक परिवार हो । संस्कृति का यह विशाल प्रदर्श जैन - संस्कृति में पूर्णतया घटित हो रहा है । इसके लिए जैन-धर्म का गौरव पूर्ण उज्ज्वल अतीत पूर्ण रूपेण साक्षी है । मैं आशा करता हूं, आज का पिछड़ा जैन समाज भी अपने महान् अतीत के गौरव की रक्षा करेगा और भारत की वर्तमान विकट परिस्थिति में बिना किसी जाति, धर्म, कुल या देश के भेदभाव के दरिद्रनारायण की सेवा में अग्रगामी बनेगा और जन सेवा को ही भगवान् की सच्ची उपासना समझेगा । 1. परस्परोपग्रहो जीवानाम् । तत्त्वार्थाधिगमसूत्र 5.21 2. स्थानांग सूत्र -- दशम स्थान स्थानांग सूत्र -- 3.4.21 दशवेकालिक सूत्र - 4.2.23 3. 4. 5. 6. निशीथसूत्र – उद्द े. 4 7. दशाश्रुतस्कन्ध - नवमदशा सन्दर्भ उत्तराध्ययन- तपोमागं अध्ययन 8. प्रोपपातिक सूत्र - पीठिका 9. स्थानांग सूत्र - 8.91 10. भगवती सूत्र - श. 2, उ. 4 11. 29.43 12. 13. 14, महावीर चरित्र - प्राचार्य हेमचन्द्र कृत उत्तराध्ययन सूत्र उत्तराध्ययन, कमलसंयमकृत टीका, परीषह अध्ययन प्राचारांग - महावीर - जीवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy