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________________ 120 ] सकारात्मक अहिंसा दान और खेती किसान अपने घर में संचित अच्छे बीज के दानों को खेत की मिट्टी में क्यों फेंकता है ? इसीलिये कि उसे यह विश्वास है कि यह बढ़ने-बढ़ाने का रास्ता है। अपने करण को या बीज को बढ़ाने का यही माध्यम है कि उसे खेत में डाले । जब तक बीज को खेत में नहीं डालेगा तब तक वह बढ़ेगा नहीं। पेट में डाला हुआ कण तो खत्म हो जायगा, जठराग्नि से जल जायगा किन्तु, खेत में, भूमि में डाला हा बीज फलेगा-फलेगाव बढ़ेगा। ठीक यही स्थिति दान की भी है। थोड़ा सा अंतर अवश्य है । बीज को खेत में फेंकने में किसान अधिक लाभ मानता है, इसलिए फेंकता है । पर हमारे धर्म-पक्ष में दान की इस तरह की स्थिति नहीं है। दान की प्रवत्ति में जो अपने द्रव्य का दान करता है वह केवल इस भावना से ही दान नहीं करता कि उससे उसको अधिक लाभ होगा, बल्कि उसके साथ यह भावना भी है कि यह परिग्रह दुःखदायी है, इससे जितना अधिक स्नेह रखूगा, मोह रखूगा, यह उतना ही अधिक क्लेशवर्द्धक तथा आर्त एवं रौद्र-ध्यान का कारण बनेगा। दान से महती निर्जरा स्थानांगसूत्र में श्रावक के जो तीन मनोरथ बताये गये हैं, उनमें पहले मनोरथ में परिग्रह-त्याग को महती निर्जरा का महान् कारण बताते हुए उल्लेख किया गया है- "तीहिं ठाणेहि समणोवासए महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ तं जहा-कयाणं अहं अप्पं वा बहुअं वा परिग्गहं परिचइस्सामि, ........एवं समणसा, सवयसा, सकायसा जागरमाणे समरणोवासए महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ ।" अर्थात् तीन प्रकार के मनोरथों की मन, वचन और काया से भावना भाता हुआ श्रावक पूर्वोपार्जित कर्मों को बहुत बड़ी मात्रा में नष्ट कर भवाटवी के बहुत बड़े पथ को पार कर लेता है। वे मनोरथ इस प्रकार हैं-'अरे ! वह दिन कब होगा, जब मैं अल्प अथवा अधिकाधिक परिग्रह का परित्याग कर सकूगा ........।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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