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________________ 98 ] सकारात्मक अहिंसा से पुण्य के अनुभाग का उत्कर्ष ( वृद्धि ) होता है, क्षय नहीं होता । पुण्य का यह उत्कृष्ट उदय सिद्ध अवस्था की प्राप्ति के अन्तिम क्षण तक रहता है । सिद्ध अवस्था प्राप्ति होने पर पुण्य स्वतः उसी प्रकार छूट जाता है जिस प्रकार यात्री के अपने गन्तव्य स्थल पर पहुँच कर अपने वाहन से उतरने पर वायुयान, रेल, कार आदि वाहन स्वत: छूट जाते हैं । उन्हें छोड़ने का प्रयत्न नहीं करना पड़ता और न वह यात्री इन्हें त्यागने का संकल्प ही करता है । सच तो यह है कि यात्री अपने वाहन की सहायता से ही गन्तव्य स्थल या लक्ष्य तक पहुंचता है। अतः सद्प्रवृत्तियां मुक्ति में सहायक हैं, लेशमात्र भी बाधक नहीं हैं । यदि सद्प्रवृत्तियां मुक्ति में कहीं भी, किसी भी रूप में बाधक होतीं तो जैसे मुक्ति में बाधक पाप का त्याग किया जाता है वैसे ही दया, दान आदि सद्प्रवृत्तियों का भी त्याग किया जाता । परन्तु, समस्त जैनागमों व उनकी टीकाओं में सद्प्रवृत्तियों या पुण्य के त्याग का न कोई पाठ ही आता है और न कोई उल्लेख हो । व्रत- ग्रहण पाप के त्याग का ही होता है, पुण्य के त्याग का व्रत नहीं लिया जाता । जैनागमानुसार 'दुष्प्रवृति' पाप व अधर्म है और सद्प्रवृत्ति पुण्य व धर्म है । जैसा कि उत्तराध्ययनसूत्र के बीसवें अध्ययन की गाथा 37 में कहा है 'अप्पा मित्तममित्तं च दुप्पट्ठय सुप्पट्ठिश्रो ।' अर्थात् आत्मा की दुष्प्रवृत्तियां उसकी शत्रु हैं और सद्प्रवृत्तियां उसकी मित्र हैं । जैनधर्म-ग्रन्थों में कर्मों की संक्रमण प्रक्रिया का अति महत्त्वपूर्ण विस्तृत वर्णन है तदनुसार यह नियम है कि जब कोई प्राणी दुष्कर्म - पाप करता है तो उसके पूर्वोपार्जित सत्ता में स्थित 'पुण्य कर्म' पाप कर्म में परिवर्तित हो जाते हैं । इसी प्रकार जब कोई सद्प्रवृत्ति करता है तो उसके पूर्वोपार्जित पाप कर्मों का स्थिति व अनुभाग बंध का अपवर्तन हो जाता है अर्थात् पाप कर्म घट जाता है, क्षय हो जाता है । साथ ही पाप कर्मों का पुण्य में रूपान्तरण हो जाता है, इसे वर्तमान मनोविज्ञान में उदात्तीकरण (Sublimation) कहा जाता है । इस प्रकार दया, दान, सेवा, परोपकार, अनुकम्पा, - Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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