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सकारात्मक अहिंसा
अक्षय-अखण्ड-अनन्तसुख का रसास्वादन नहीं कर पाता है। वह प्रभाव-ग्रस्त तथा नीरसता,शुष्कता, क्षुद्रता, संकीर्णता व पराधीनता में ही अपना जीवन बिता देता है । अक्षय, अखण्ड, अनन्तसुख से वंचित ही रह जाता है । रोता आया, रोता रहा और रोता ही मर जाता है, या यों कहें कि रोता पैदा हुआ, जिन्दगी भर विषय सुख पाने के लिए रोता रहा, और मरा तब भी रोता हुआ ही मरा । मानव की यह दशा घोर दयनीय है, दुःखद है, हृदय को कम्पित करने वाली है।
सहानुभूति, संवेदनशीलता और आत्मीयता जहां है वहां ही सज्जनता है। सज्जन का हृदय मक्खन के समान कोमल होता है। जैसे मक्खन थोड़े से ताप से ही पिघल जाता है उसी प्रकार सज्जन का हृदय दूसरे के थोड़े से संताप से ही पिघल जाता है, द्रवित हो जाता है । करुणा की धार बहने लगती है। उससे दूसरे का दुःख सहा नहीं जाता । सन्त तुलसीदास ने भी कहा है-'सन्त हृदय नवनीत समाना।'
दूसरे के प्रति सहानुभूति रखने वाले, सज्जनों एवं सन्तों के अगणित उदाहरण भरे पड़े हैं। उनमें से यहां कुछ प्रस्तुत हैं
(1) श्री रामकृष्ण परमहंस ने एक कुत्ते को पिटते हुए देखा तो उनकी सहानुभूति अत्यन्त तीव्र हुई उन्हें भी वैसी ही संवेदना का अनुभव हुआ फलस्वरूप उनकी पीठ पर बैंत से पिटाई के तीन निशान हो गए एवं वह वेदना कई दिनों तक सहन करनी पड़ी।
(2) सन्त तुकाराम ने भोजन के लिए थाली में रोटी रखी ही थी कि एक कुत्ता आया और रोटी लेकर भाग गया। सन्त तुकाराम भी घी की कटोरी लेकर उसके पीछे भागे कि मैं घी से बिना चुपड़ी रोटी नहीं खाता हूं तो तुम बिना घी के रोटी कैसे खाप्रोगे, अतः इसे घी से चुपड़ने दो।
(3) वाल्मीकि के बाण से क्रौंच पक्षी के बिंधने के कारण उसके साथी पक्षी ने विलाप किया। विरह की वेदना से बार-बार
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