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सकारात्मक अहिंसा
किसी से घृणा नहीं करता है, सब उसे अपने ही लगते हैं। उसकी दृष्टि में पराया कोई रहता ही नहीं है, स्वपर का भेद मिट जाता है। वह अपना सर्वस्व सबको समर्पित कर देता है। जहां किसी से किसी भी प्रकार का सुख पाने की अपेक्षा है वहाँ ममत्वभाव है
और जहां अपना सुख समर्पण करने में प्रसन्नता है वहाँ प्रात्मत्वभाव है । आत्मत्वभाव में ममत्वभाव नहीं रहता।
सहानुभूति
आत्मीयता के विकास का मापन है संवेदनशीलता। जिस हृदय में दूसरे के दुःख को देखकर उस दुःख की अनुभूति होने लगती है वह संवेदनशील हृदय है । संवेदनशील हृदय में ही सहानुभूति होती है । सहानुभूति करने वाला व्यक्ति दूसरे की वेदना सहन नहीं कर सकता, उसे दूर किए बिना उसे चैन नहीं पड़ता, अपने समक्ष आये पीड़ित व्यक्ति की पीड़ा का अनुभव कर वह उसे दूर करने में यथासम्भव सहयोग देता है।
आगमों में कहा है कि जिस जीव का दर्शनगुण जितना विकसित है उसमें उतनी ही संवेदनशीलता है । संवेदनशीलता उसके विकास की द्योतक है। सहानुभूति संवेदनशीलता की द्योतक है। इस प्रकार सहानुभूति आत्मा के विकास की द्योतक है। जहां सहानुभूति नहीं वहां चेतनता नहीं, जड़ता, मूर्छा या मोह है । वस्तुता संवेदनशीलता का विकास ही चेतना का विकास है । पृथ्वीकाय से वनस्पतिकाय की चेतना अर्थात् संवेदनशीलता अधिक विकसित है। इसी प्रकार एकेंद्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय की संवेदनशीलता क्रमशः अनंतगुणी विकसित है। अर्थात् ये अपने सम्पर्क में आने वाले अपने सजातीय जीवों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, अधिक सहानुभूति दिखाते हैं। चतुरिन्द्रिय से पंचेन्द्रिय पशु-पक्षी बहुत अधिक संवेदनशील होते हैं । वे अपनी सन्तान की रक्षा के लिए प्राण तक दे देते हैं। सिंह का आक्रमण होता है तो पशुओं में भगदड़ मच जाती है। सब अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागते हैं। परन्तु, हरिणी अपने लघु शिशु को बचाने के लिए उसे छोड़कर नहीं जाती
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