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________________ आत्मीयता और सहानुभूति [ 69 तो इतना प्रेम और विश्वास है कि पति कमाकर जो भी लाता है वह सबका सब पत्नी के सुपुर्द कर देता है तथा पत्नी में पति व पूरे परिवार के प्रति इतनी प्रात्मीयता होती है कि भोजन स्वयं बनाती है, परन्तु पूरे परिवार को खिलाकर जो बचा-खचा, ठंडा-बासी भोजन होता है उसे वह खाती है। इन सबकी प्रसन्नता की जड़ है परिवार के सदस्यों में पारस्परिक प्रेम, आत्मीयता एवं विश्वास । इसके विपरीत अमेरिका, यूरोप आदि देश धन से सम्पन्न होकर भी मन से विपन्न हैं, दरिद्र हैं। फलतः नीरसता में जीवन जीते हैं। नीरसता को दबाये व भुलाये रखने के लिए मद्य पीते हैं अथवा विभिन्न प्रकार के नये-नये इन्द्रिय भोगों में लिप्त रहते हैं फिर भी नीरसता उनका पीछा नहीं छोड़ती। कितनी दयनीय स्थिति है धन से संपन्न परन्तु मन से दरिद्र इन लोगों की? जबकि भारतवासी धन से निर्धन परन्तु मन से सम्पन्न होने से सदैव प्रसन्नता में रहते हैं। उन्हें वृद्धावस्था बिताने के लिए वृद्धाश्रम (Old House) नहीं ढूढ़ने पड़ते हैं। तात्पर्य यह है कि प्रात्मीयता से परिवार में वास्तविक संपन्नता, सरसता व प्रसन्नता आती है। यही परिवार की सच्ची समृद्धि भी है । आज से पचास वर्ष पहले जिस घर में परिवार के अधिक सदस्य मिलकर रहते थे उसे ही सम्पन्न व श्रेष्ठ परिवार समझा जाता था। जिसमें आत्मीयता का विकास होता है वह सबको अपने समान समझता है, सब में निज स्वरूप का अनुभव करता है । निज स्वरूप का अनुभव करने से उनके प्रति प्रियता जागृत होती है। जिसके प्रति प्रियता होतो है तो व्यक्ति को उसकी प्रसन्नता में ही अपनी प्रसन्नता का अनुभव होता है। उससे प्रिय का दुःख सहा नहीं जाता । उसमें सर्वभूतात्मभाव आ जाता है। जैसा कि ईशोपनिषद् में कहा है : यस्य सर्वाणि भूतानि प्रात्मन्येवानुपश्यति । सर्वभूतेषुचात्मानं ततो न विजुगुप्सते ।। अर्थात् जिसमें प्रात्मीयभाव है वह सब प्राणियों को अपने स्वरूप में देखता है और सब प्राणियों में अपने को ही देखता है, वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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