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________________ 68 ] सकारात्मक अहिंसा अमेरिका के वृद्धाश्रमों में जाकर देखा जा सकता है। वहां पर अनेक करोड़पति रहते हैं। उन करोड़पतियों से जब कोई भारतीय मिलता है और उन्हें भारत के पारिवारिक जीवन का परिचय देता है कि भारत में वृद्ध माता-पिता की संतान उनकी पूर्ण सेवा करती है, उन्हें प्रसन्न रखने का हर संभव प्रयत्न करती है और वृद्धजन भी अपने पुत्रों, पौत्रों, पौत्रियों के साथ आत्मीयता से, प्रेम से अपना जीवन सरसतापूर्वक बिताते हैं। यह परिचय जब वे वृद्धजन सुनते हैं तो उनका हृदय विह्वल हो जाता है और प्रांखों से आंसू टपकने लगते हैं क्योंकि उनकी संतान कई दिनों में पाकर औपचारिक रूप से कुछ मिनट तक मिल लेती है, परन्तु भारतीयों की भाँति उनमें आत्मीयता की भावना नहीं होती है । इससे यह फलित होता है कि धन भले ही अरबों-खरबों का हो उससे सरसता नहीं आती । सरसता तो आत्मीयता से हो पाती है । प्रात्मीयता के अभाव में जीवन में नीरसता ही रहती है। नीरसता से होनता की भावना पैदा होती है। नीरसता और हीनता से बढ़कर अन्य कोई दुःख नहीं है। इस प्रकार अमेरिको लोगों का जीवन दुःखभरा है। भारत के लोगों की स्थिति इसके विपरीत है। भारत में लगभग प्राधे मनुष्य गरीबी की रेखा से निम्न स्तर पर जी रहे हैं। उन्हें न भरपेट खाने को मिलता है और न तन पर पूरे कपड़े हैं। पैरों में जूतें नहीं, धूप से बचने के लिए छाता नहीं, ऐसी दीनहीन स्थिति में जेठ माह की भयंकर धूप व गर्मी में तथा झुलसा देने वाली लू के मध्य में, नंगे पैर औरतें जंगल में से लकड़ी काटती हैं फिर लकड़ी का भार अपने सिर पर रखकर जिस प्रसन्नता के साथ गाना गाती आती हैं, वह दृश्य देखते ही बनता है। इतनी गरीबी में भी इतनी प्रसन्नता का कारण है उनके निजी व पारिवारिक जीवन में आत्मीयता का होना । पारस्परिक प्रात्मीयता से उन्हें यह विश्वास होता है कि रोग, शोक, भूख-प्यास आदि दुःखों के समय पूरा परिवार उनके साथ है। परिवार के एक व्यक्ति को कुछ भी मिलेगा तो वह पूरे परिवार को मिलेगा। घर का मुखिया तो पहले परिवार के सब सदस्यों को खिलाकर पीछे खाता है। भारत में दाम्पत्य जीवन में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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