________________
वात्सल्य
[ 63
मनुष्य और अन्य प्राणियों में एक बहुत बड़ा अंतर है। अन्य प्राणियों को उनकी माता जन्म देती है, परन्तु उनको इतना वात्सल्य नहीं दे सकती जितना मानव की माता । इसका एक मुख्य कारण यह है कि मानेवतर प्राणियों की माता को अपना भोजन स्वयं जुटाना पड़ता है जिसके लिए अपने बच्चों को छोड़कर इधर-उधर भागदौड़ करनी पड़ती है। उसे अपने शरीर की रक्षा के लिए ही अपनी सारी शक्ति, श्रम व समय लगाना होता है। दूसरा कारण भाषा, भावाभिव्यक्ति के साधन, बुद्धि आदि भी उसके पास इतने अधिक व उच्चस्तर के नहीं होते हैं जितने मानव के पास । इन कारणों से मानवेतर प्राणियों की माता के वात्सल्य-भाव से मानव की माता का वात्सल्यभाव श्रेष्ठ है। यही माता की श्रेष्ठतम शक्ति है और सम्पत्ति भी है। यदि मानव की माता में वात्सल्य-भाव नहीं होता तो वह पशकोटि का प्राणी होती। मानव को वात्सल्यभाव की यह जन्म-घुट्टी उसे अपनी माता के स्तनपान के साथ ही मिलती है। इस वात्सल्यभाव का ही दूसरा नाम मानवता है । वात्सल्य का विकास ही मानवता का विकास है। वात्सल्य या मानवता के अभाव में 'मानव' मानव नहीं रह जाता है और न पशु ही रह जाता है अपितु राक्षस बन जाता है जो पशुता की तुलना में असंख्य गुणा अधिक भंयकर बुरा है, क्योंकि पशु अपनी ओर से किसी को हानि पहुंचाने का संकल्प नहीं करता है वह सुरक्षा का खतरा उत्पन्न होने पर या भूख लगने पर ही दूसरों पर आक्रमण करता है, संग्रह के लिए नहीं जबकि स्वार्थी मनुष्य संग्रह के लिए विश्व का शोषण करने व हानि पहुंचाने की तैयारी करता ही रहता है। उसका हृदय अत्यन्त कठोर व महाक्रूर होता है ।
वात्सल्यभाव में प्रेम होता है। प्रेम स्वयंभू होता है, वह किसी अन्य कारण से उत्पन्न नहीं होता है। जो किसी से किसी अपेक्षा को लेकर पैदा होता है वह स्वार्थ है, प्रेम नहीं। प्रेम में किसी भी प्रकार की कोई भी अपेक्षा नहीं होती है। प्रेम सर्वथा निःस्वार्थ होता है। प्रेम व्यापक होता है, सबके प्रति समान होता है, प्रेम में न्यूनाधिकता नहीं होती। जहां प्रेम में न्यूनाधिकता है वहां द्वेष है। जहां द्वेष का
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org