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________________ दान [ 55 रक्तदान से रक्तदाता को निर्बलता नहीं आती है तथा अन्य किसी भी प्रकार की कोई क्षति भो नहीं होती । इस प्रकार रक्तदाता अपनी किसी भी प्रकार की हानि किए बिना अभयदान कर सकता है । यह रक्तदान कोई भी स्वस्थ, किशोर व युवा व्यक्ति दे सकता है । नेत्रदान का भी कम महत्त्व नहीं है । कहावत भी है कि "आंख के बिना संसार में अन्धकार है ।" अर्थात् नेत्र के बिना जीवन अधूरा है। रात को बिजली का प्रकाश चले जाने पर हमें अन्धकार में कुछ घण्टे भी काम करना पडे तो कितनी कठिनाई अनुभव होती है और जिसे पूरा जीवन ही ऐसा बिताना पड़े उसके दुःख का तो पारावार ही नहीं है । मरणोपरान्त नेत्र का देह के साथ जलकर एक दो ग्राम राख बनने के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता जबकि वही नेत्र किसी के लग जायें और वह अन्धकार के नारकीय जीवन से प्रकाश जगत् में श्रा जाय तो उसकी प्रसन्नता का सीमांत ही न रहे । अतः नेत्रदान भी जीवनदान ही है, अभयदान ही है । जीवनदान महान् दान होता है । इस प्रकार नेत्रदान और रक्तदान दोनों दानों में अपनी गांठ से कुछ नहीं देना पड़ता है और महान् उपकार होता है । अर्थात् " हल्दी लगे न फिटकरी, रंग चौखा प्रा जावे" यह कहावत पूर्ण चरितार्थ होती है । आहार- दान, श्रीषधि-दान, वस्त्रदान आदि से तो लाभ कुछ समय तक ही होता है, परन्तु रक्तदान और नेत्रदान, जीवनदान है । अतः इनसे जीवन भर लाभ होता है । ऐसे सहज मिलने वाले महान् लाभ को प्राप्त करना हम सबका कर्त्तव्य है । इसी प्रकार ज्ञानदान, विद्यादान, औषधदान, भूदान, श्रमदान, सम्पत्तिदान पैरदान (कृत्रिम पैर प्रदान करना) समाज-सुधार, लोक सेवा, मातृ-पितृ सेवा आदि दान के विविध रूप हैं । यहां विविध दानों के विषय में संकेत देने का आशय यह है कि कोई भी व्यक्ति चाहे वह धनी हो या निर्धन, विद्वान् हो या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002119
Book TitleSakaratmak Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1996
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size17 MB
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