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________________ ( ४७ ) आख्यायिका व कथा है । यद्यपि इसके समय के बारे में विद्वानों में कुछ मतभेद है, परन्तु सामान्य रूप से छठी शताब्दी में इस कवि का अस्तित्व बतलाया जाता है। 'प्रियदर्शना'1 एक सुप्रसिद्ध नाटक है और वह थानेश्वर के चक्रवर्ती नृपति कवि हर्ष की बनाई हुई है । हर्ष का समय सर्वथा निश्चित है। ई. स. ६४८ में इस प्रतापी और विद्याविलासी नृपति की मृत्यु हुई थी। ई. स. की ७वीं शताब्दी का पूरा पूर्वार्द्ध हर्ष के पराक्रमी जीवन से व्याप्त था। हमारे एक वृद्धमित्र साक्षरवर श्री के. ह. ध्रव ने प्रियदर्शना के गुजराती भाषान्तर की भूमिका में इसका रचना समय ई. स. ६१८ के लगभग अनुमानित किया है। इससे प्रस्तुत विषय में, यह बात जानी जाती है कि प्रियदर्शना का नाम निर्देश करनेवाले हरिभद्रसूरि उसके रचना-समय बाद ही कभी हुए होगे । प्राकृतगाथा में बतलाये मुताबिक हरिभद्र छठी शताब्दी में नहीं हुए, ऐसा जो निर्णय हम करना चाहते हैं, उसमें यह भी एक प्रमाण है, इतनी बात ध्यानमें रख लेने लायक है । ] इस नामावली में के कितने नामों का तो अभी तक विद्वानों को शायद परिचय ही नहीं है कितने एक नाम विद्वत्समाज में परिचित तो हैं परन्तु उन नामधारी व्यक्तियों के अस्तित्व के बारे में पराविद् पण्डितों में परस्पर सैकड़ों ही वर्षों जितना बड़ा मतभेद है। कोई किसी विद्वान् का अस्तित्व पहली शताब्दी बतलाता है, तो कोई जन्म पानेवाली 'प्रियदर्शना' का नाम उनके उल्लेख में नहीं आ सकता, यह स्वत: सिद्ध है। जिनभद्र के इस प्रमाण से, वासवदत्ता के कर्ता सम्बन्ध का समय जो बहुत से विद्वान् छठी शताब्दी बतलाते हैं और उसे बाण का पुरायायी मानते हैं, सो हमारे विचार से ठीक मालम देता है। १. वर्तमान में इस नाटिका की जितनी संस्कृत आवृत्तियाँ प्रकाशित हुई हैं उन सब में सबका नाम 'प्रियदर्शिका' ऐसा छपा हुआ है, परन्तु श्रीयुत् केशवलालजी ध्र व ने, अपने गुजराती अनुवाद की प्रस्तावना में (द्रष्टव्य पृ. ७६, नोट.) यह सिद्ध किया है कि इसका मूल नाम 'प्रियदशिका' नहीं किन्तु 'प्रियदर्शना' होना चाहिए और अपनी पुस्तक में उन्होंने यही नाम छपवाया भी है। ध्रुव महाशय के इस आविष्कार का हरिभद्र के प्रकृत उल्लेख से प्रामाणिक समर्थन होता है । २. द्रष्टव्य पृ. ७९ पहली आवृत्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002118
Book TitleHaribhadrasuri ka Samaya Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size4 MB
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