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________________ ( ४६ ) पतञ्जलि-भाष्यकार ' पाणिनि-वैयाकरण भर्तृहरि-वैयाकरण विन्ध्यवासी बौद्ध कुक्काचार्य दिवाकर (?) दिङ्नागाचार्य धर्मपाल धर्मकीति धर्मोत्तर भदन्तदिन वसुबन्धु शान्तरक्षित शुभगुप्त पतञ्जलि-योगाचार्य भगवद् गोपेन्द्र व्यास महर्षि शिवधर्मोत्तर जैन अजितयशाः उमास्वाति जिनदास महत्तर जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण देववाचक भद्रबाहु मल्लवादी समन्तभद्र सिद्धसेन-दिवाकर संघदासगणि [टिप्पणी-इन ग्रन्थकारों के अतिरिक्त, हरिभद्र के प्रबन्धों-ग्रन्थों में कितने ही जैन-अजैन ग्रन्थों के भी नाम मिलते हैं। इन में का एक नाम खास उनके समय के विचार में भी विचारणीय है । आवश्यक सूत्र की शिष्यहिता नामक बृहद्वृत्तिमें, एक जगह, निर्देश्य-निर्देशक विषयक नाम निर्देश के विचार में, हरिभद्रसूरि ने, ५-६ ग्रन्थों के नाम लिखे हैं, जिनमें 'वासवदत्ता' और 'प्रियदर्शना'का भी नामनिर्देश है । 'वासवदत्ता' सुबन्धु कविकी प्रसिद्ध १. द्रष्टव्य आवश्यकसूत्रकी हरिभद्रीय बत्ति, प. १०६, यथा'निर्देश्यवशाद् यथा-वासवदत्ता, प्रियदर्शनेति ।' --जिनभद्रगणि ने विशेषावश्यकभाष्य में इसी प्रसंग पर 'अहवा निद्दिठवसा वासवदत्ता-तरंगवइयाइं ।' ऐसा लिख कर वासवदत्ता और तरंगवती (जो गाथा सत्तसई के संग्राहक प्रसिद्ध महाराष्ट्रीय कवि नृपति सातवाहन या हाल के समकालीन जैनाचार्य पादलिप्त या पालित कवि की बनाई हुई है) का उल्लेख किया है । जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण का समय छठीं शताब्दी है, इसलिये ७वीं शताब्दी में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002118
Book TitleHaribhadrasuri ka Samaya Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size4 MB
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